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‘मुफ्त की रेवड़ी’ का सहारा है

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में मुफ्त बिजली और पानी देने का ऐलान किया। उसके बाद एक एक करके पार्टियां इसमें वस्तुएं और सेवाएं जोड़ती गईं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ‘मुफ्त की रेवड़ी’ कहा था। उन्होंने कहा था कि ‘मुफ्त की रेवड़ी’ की राजनीति देश के बरबाद कर देगी। लेकिन बहुत जल्दी उन्होंने यह जुमला बोलना छोड़ दिया क्योंकि मुफ्त में वस्तुएं और सेवाएं बांटने की घोषणा से विपक्षी पार्टियां चुनाव जीतने लगीं। अरविंद केजरीवाल दिल्ली के बाद पंजाब का चुनाव जीत गए। 2023 में कांग्रेस पार्टी कर्नाटक का चुनाव जीत गई। भाजपा को भी इन योजनाओं से जीत मिलने लगी। 2023 में कांग्रेस के कर्नाटक जीतने के बाद उसी साल के अंत में भाजपा ने लाड़ली बहना योजना के दम पर मध्य प्रदेश जीता और महतारी वंदन योजना ने छत्तीसगढ़ में जीत दिलाई। छत्तीसगढ़ के प्रचार में ही प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान किया कि मुफ्त में अनाज बांटने की योजना 2029 तक चलती रहेगी। इसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर दिखा। केंद्र सरकार अनेक योजनाओं के तहत वस्तुएं या नकद पैसे बांट रही है।

बिहार में इसका एक अलग ही रूप देखने को मिला है। बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्य है। भारत सरकार के नीति आयोग की ओर से बनाए गए सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल यानी एसडीजी के हर पैरामीटर पर बिहार सबसे नीचे है। यह इसके बावजूद है कि पिछले 20 साल से एक व्यक्ति की सरकार चल रही है। अभी तो डबल इंजन की सरकार है। लेकिन डबल इंजन की सरकार सार्वजनिक निवेश के जरिए बिहार के विकास की योजना पर काम नहीं कर रही है। उसने निजी निवेश का रास्ता खोला है। एक रुपए की दर पर अडानी समूह को एक हजार करोड़ रुपए की जमीन दी है और वह भी कोयला आधारित बिजली संयंत्र बनाने के लिए। डबल इंजन की सरकार सरकारी खर्च से फैक्टरियां नहीं लगा रही है। इसकी बजाय वह मुफ्त की चीजें और सेवाएं बांटने का ऐलान कर रही है। बिहार जैसे राज्य में, जहां कर्ज जीडीपी के 32 फीसदी के बराबर हो गया है और हर दिन 63 करोड़ रुपए कर्ज का ब्याज चुकाना पड़ रहा है वहां सरकार कर्ज लेकर नकदी बांट रही है।

बिहार में एक करोड़ 21 लाख महिलाओं के खाते में मुख्यमंत्री महिला उद्यमी योजना के तहत 10-10 हजार रुपए भेजे गए हैं। बेरोजगार स्नात्तक युवाओं को सरकार हर महीने एक हजार रुपए देगी। नए पंजीकृत वकीलों को तीन साल तक पांच पांच हजार रुपए दिए जाएंगे। शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विकास मित्रों को 25-25 हजार रुपए टैबलेट के लिए दिए गए हैं। 125 यूनिट बिजली फ्री कर दी गई है। हर कामकाजी समूह का मानदेय दोगुना किया गया है और सभी समूहों की पेंशन बढ़ा दी गई है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन तो चार सौ रुपए महीना से बढ़ा कर 11 सौ रुपया किया गया है।

सोचें, चीनी मिलें बंद हैं उन्हें नहीं खोलना है। कपड़े की बड़ी फैक्टरी बंद पड़ी है उसे नहीं खोलना है। सीप और मोती उद्योग ठप्प हो गया है उसे फिर से जीवित नहीं करना है। कृषि आधारित उद्योग नहीं लगाने हैं। आईटी पार्क, फूड पार्क या टेक्सटाइल पार्क नहीं बनाना है। केवल लोगों को मुफ्त की सेवाओं और पैसे की आदत लगा कर वोट लेना है। अब यही पूरे देश के चुनाव का मॉडल बन गया है। हकीकत वह है, जो महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल ने बयान किया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में लड़की बहिन योजना के तहत पैसा बांटने के कारण राज्य सरकार की सारी योजनाएं ठप्प हो गई हैं। नागरिकों को सशक्त बनाने और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की बजाय उनको सरकार पर निर्भर बनाने की यह सोच कहां ले जाएगी, कहा नहीं जा सकता है।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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