यों प्रधानमंत्री मोदी के 2014 से शुरू शासन के अनुभवों पर जब भी भविष्य में शेयर बाजार की स्टडी होगी तो निष्कर्ष निकलेगा कि कोई देशी निवेशक नहीं जिसे विदेशी सटोरियो ने ठगा नहीं। इसलिए क्योंकि असल कमाई, असल खेला विदेशी निवेशकों का है। इस सप्ताह गजब हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने जीएसटी घटाने पर राष्ट्र को जगाया। घर घर हल्ला बनाया कि सब सस्ता हुआ, चलो बाजार। ऐसा लगा लोग खरीदने के लिए उमड़ पड़ेंगे (मानों लोगों की जेबें भरी हुई हैं)। जाहिर है घरेलू खपत में उछाले, आर्थिकी को दौड़ाने की हवाबाजी। सो, कंपनियों, दुकानदारों, ग्राहकों सभी का सुनहरा समय। तभी लोगों को शेयर बाजार के भागने की भी उम्मीद थी।
लेकिन उलटा हुआ। शेयर बाजार ने न ताली बजाई और न थाली! इन पंक्तियों के लिखने तक छठे दिन भी शेयर बाजार में गिरावट है। यों शुक्रवार की गिरावट का ताजा कारण ट्रंप प्रशासन द्वारा एक अक्टूबर से ब्रांडेड दवा आयात पर एक सौ प्रतिशत टैरिफ की घोषणा है। इससे भारत से अमेरिका को होने वाले 3.6 अरब डॉलर के फार्मा निर्यात के बाजे बजेंगे। मगर शेयर बाजार में गिरावट का सिलसिला जीएसटी रेट घटने से ही शुरू है। जबकि 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के लाल किले पर भाषण से लेकर इस सप्ताह भी प्रधानमंत्री द्वारा जीएसटी के मैजिक में जीएसटी बचत उत्सव, स्वदेशी, आत्मनिर्भर भारत, चिप से शिप तक के निर्माण आदि, आदि की इतनी बातें की मानों आर्थिकी का एक और अमृत काल!
सवाल है जो शेयर बाजार बात बात पर उछलता था, सरकार खुद अपने संस्थागत निवेशकों से जैसे बाजार को उछाले रखती थी वैसा इस सप्ताह क्यों नहीं हुआ? विदेशी संस्थागत निवेशक जब लगातार बाजार से पैसा निकाल विदेश पैसा ले जा रहे हैं तो मोदी सरकार के इशारों पर चलने वाली भारतीय निवेशक संस्थाएं क्यों नहीं शेयर खरीद कर बाजार में उछाला बनाए हुए है? कुछ भी हो जब जीएसटी को सरकार ने मोदी मंत्र के रूप में प्रचारित किया है तो दिवाली तक के त्योहारी सीजन में एलआईसी, बैंकों आदि को क्या शेयर बाजार 90 हजार तक उछाल नहीं देना चाहिए? इससे ट्रंप प्रशासन की टैरिफ मार को भी जवाब मिलता। दुनिया देखती, लोग देखते कि वाह! मोदी सरकार, अडानी-अंबानी किसी को भी ट्रंप की चिंता नहीं है। भारत खुद ही दुनिया को होने वाले आयात को अपने घर की खरीदारी से खपा देगा।
पर भारत का शेयर बाजार क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशकों का खेला है तो जाहिर है उनके पास भारत की कहानी का मसाला बचा नहीं है। तभी निरंतर बिकवाली है, शेयर बाजार लुढ़क रहा है। और ऐसा होते रहना है इसलिए क्योंकि भारत की कहानी में अब न उभरती इकोनॉमी का नैरेटिव है और न महाशक्ति रूतबे का जलवा है। इसका प्रमाण संयुक्त राष्ट्र की आमसभा के शुरुआती भाषणों से अलग उजागर है। इस दफा प्रधानमंत्री मोदी न्यूयॉर्क नहीं गए। उनकी जगह विदेश मंत्री जयशंकर भाषण करेंगे। और कल्पना करें जयशंकर के पास कूटनीति का क्या एजेंडा होगा?
ठीक विपरीत पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल न्यूयॉर्क, अमेरिका में छाया दिख रहा है। कल ही खबर थी कि वॉशिंगटन में राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके जनरल मुनीर को महान नेता बताते हुए उनसे बातचीत की। न्यूयॉर्क में भी मुस्लिम देशों के प्रमुखों से बहुपक्षीय बात करते हुए ट्रंप ने दोनों को महत्व दिया। उधर नाटो महासचिव मार्क रूट ने दुनिया को बताया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूसी राष्ट्रपति पुतिन से संपर्क में हैं। नरेंद्र मोदी उनसे यह पूछ रहे हैं, ‘मैं आपका समर्थन करता हूं, लेकिन क्या आप मुझे अपनी रणनीति समझा सकते हैं क्योंकि अब अमेरिका के लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ़ का असर हम पर पड़ रहा है’। जाहिर है अमेरिका और पश्चिमी देशों की कूटनीति में भारत अलग-थलग हुआ है। तभी मेरा मानना है विदेशी निवेशक भारत के अलगाव को समझते हुए शेयर बाजार से पैसा निकालते रहेंगे। और शेयर बाजार जीएसटी मैजिक में भी मार खाएगा।