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चमक, दमक, धमक से भरपूर: ‘बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड’

बैड्स ऑफ़ बॉलीवुडके हर डिपार्टमेंट में अच्छा काम किया गया है। कलाकारों की परफॉर्मेंस की बात करें तो वो इसका एक बेहद मज़बूत पहलू है। एक से एक मंझे हुए कलाकारों में मनोज पाहवा इस शो की आत्मा हैं। उनकी कॉमिक टाइमिंग और भावनात्मक गहराई दोनों ही कमाल की हैं। नए कलाकारों में लक्ष्य और राघव जुयाल दोनों ने स्ट्रगलिंग अभिनेताओं की भूमिका में ज़बरदस्त काम किया है।

सिने-सोहबत

बेहद सफल मां-बाप के बच्चों पर ज़िंदगी में बहुत अच्छा कर गुज़रने का प्रेशर बनाने से समाज कभी भी पीछे नहीं हटा है। फ़िल्मी दुनिया में भी गाहे बगाहे ऐसे उदाहरण मिलते ही रहते हैं। साथ ही ‘नेपोटिज़्म’ के इर्द-गिर्द भी एक बहस है ही, जो अपनी जगह क़ायम है और इन सबके बीच चर्चा में है अभिनेता शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन खान का शानदार डेब्यू जो कि बतौर अभिनेता नहीं होकर एक वेब सीरीज़ के निर्देशक के तौर पर हुई है। आर्यन की यह डायरेक्टोरियल डेब्यू जिस सीरीज़ से हुई है वो है, ‘बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड’। आज के ‘सिने-सोहबत’ में चर्चा का विषय भी यही है।

शाहरुख़ ख़ान और गौरी ख़ान की प्रोडक्शन कंपनी ‘रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट’ द्वारा निर्मित सात एपिसोड्स की वेब सीरीज़ ‘बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड’ ने दर्शकों और आलोचकों दोनों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।  बिलकुल साफ़ है कि आर्यन ने अपनी पहली ही कोशिश में एक साहसी और मनोरंजक प्रयोग किया है।

‘बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड’, फ़िल्म इंडस्ट्री की चकाचौंध के पीछे की हक़ीक़त और फंतासी का एक व्यंग्यात्मक फ़साना है। इस वेब सीरीज़ की कहानी हमें उस ग्लैमर वर्ल्ड में ले जाती है, जिसके बारे में सब कुछ चमकीला और जादुई लगता है लेकिन भीतर बहुत कुछ अलग चलता है। इसकी कहानी में स्ट्रगलिंग अभिनेताओं के सपने भी हैं और स्टारडम की साज़िशें भी। इस सीरीज़ को इंडस्ट्री के अनकहे किस्से और ताने-बाने को चुटीले व्यंग्य और ह्यूमर के साथ बुना गया है। कई बार ये आभास भी ज़रुर होता है कि कहानी फॉर्मूला बेस्ड सेटअप पर खड़ी है मसलन महत्वाकांक्षी हीरो, चालाक प्रोड्यूसर्स, पर्दे के पीछे का ड्रामा,  मगर पेशकश इतनी दिलचस्प और एंटरटेनिंग है कि दर्शक अंत तक बंधे रहते हैं।

आर्यन खान का निर्देशन क़ाबिल-ए-ग़ौर है। युवा ऊर्जा और आत्मविश्वास से भरपूर। उनके निर्देशन में सबसे बड़ा आकर्षण है कि उन्होंने बॉलीवुड की अंदरूनी राजनीति और कहानियों को सेल्फ-डिप्रिकेटिंग ह्यूमर के साथ दिखाया है। जब कोई इंसान इतना साहसी हो जाए कि ख़ुद ही अपने चुटकुलों का किरदार बन सके, ख़ुद का मज़ाक बना सके तो फिर शनि भी उसका क्या ही बिगाड़ लेंगे! वैसे भी भारतीय संस्कृति में एक स्थापित विचार ये भी है कि रसानुभूति के लिए सबसे आवश्यक है ‘अहं का विसर्जन’। आर्यन के फंडामेंटल्स काफ़ी मज़बूत मालूम पड़ते हैं।

एक बात ये भी उठती है कि जब शाहरुख ख़ान इतने बड़े स्टार हैं, अभी भी उनका जलवा क़ायम है वो चल रहे हैं, सामर्थ्य की कोई कमी नहीं है, आर्यन ख़ान की शख़्सियत भी अच्छी ख़ासी सी लगती है, ज़ाहिर है निर्देशन में भी उन्होंने जितनी मेहनत की है वो इस तरह की सभी जजमेंटल धारणाओं को ध्वस्त करते हैं कि मिलेनियल्स और जेन ज़ी मेहनत से भागते हैं, फिर फ़िल्म इंडस्ट्री में उनकी एंट्री एक एक्टर के तौर पर क्यों नहीं की गई? फ़िलहाल, शायद उनका मन न हो। जज होने की एंग्जायटी से बचा जा सके और इसमें कोई हर्ज़ भी नहीं। वैसे भी ये कोई ताज़ा रणनीति नहीं है। पहले भी गुरुदत्त, राज कपूर, देव आनंद, किशोर कुमार से लेकर फरहान अख्तर तक ने आने वाले समय के लिए भी बहुमुखी सिने-प्रतिभाओं का मार्ग प्रशस्त किया ही है।

कैमरे की भाषा और सीरीज़ की पेसिंग में आधुनिक संवेदनशीलता झलकती है। वैसे, कई दृश्यों में फ़रहा खान की ‘ओम शांति ओम’ और ज़ोया अख्तर की ‘लक बाय चांस’ का अहसास होता है, लेकिन ‘बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड’ की दुनिया में फ़िल्म इंडस्ट्री को देखने का नज़रिया बिल्कुल नई पीढ़ी का है। आर्यन के विज़न और अप्रोच से साफ है कि यह सिर्फ़ “स्टार किड का डेब्यू” नहीं, बल्कि एक गंभीर फिल्मकार का आगमन है।

‘बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड’ के हर डिपार्टमेंट में अच्छा काम किया गया है। कलाकारों की परफॉर्मेंस की बात करें तो वो इसका एक बेहद मज़बूत पहलू है। एक से एक मंझे हुए कलाकारों में मनोज पाहवा इस शो की आत्मा हैं। उनकी कॉमिक टाइमिंग और भावनात्मक गहराई दोनों ही कमाल की हैं। नए कलाकारों में लक्ष्य और राघव जुयाल दोनों ने स्ट्रगलिंग अभिनेताओं की भूमिका में ज़बरदस्त काम किया है। राघव का सहज ह्यूमर और लक्ष्य की मासूमियत कहानी को जीवन देती है। फीमेल लीड की भूमिका में सेहर बम्ब्बा ने काफ़ी दमदार और असरदार प्रदर्शन किया है। उनका संतुलित अभिनय और स्क्रीन प्रेज़ेंस सीरीज़ को नई ऊंचाई देता है। साथ ही, मुख्य किरदार आसमान की मैनेजर की भूमिका में अन्या सिंह ने भी अपने किरदार में परिपक्वता और तीव्रता दिखाई। उनकी अदाकारी हर सीन में दर्शकों को बांधे रखती है। आसमान की मां की  भूमिका में हैं ज़बर्दस्त कलाकार मोना सिंह जिनकी ग्रेस और नैचुरल अभिनय शैली देखने लायक है। मनीष चौधरी ने भी एक निर्माता की भूमिका में करिश्माई और मैग्नेटिक स्क्रीन प्रेज़ेंस के साथ अपने किरदार में लगातार गहराई जोड़ते जाते हैं। रजत बेदी लंबे समय बाद इतने मज़ेदार अंदाज़ में दिखे हैं। बॉबी देओल का तो खैर पिछले एकाध साल से भाग्योदय हुआ सा लगता है। चाहे ‘आश्रम’ हो या ‘एनिमल’ बॉबी  लगातार प्रशंसा बटोर रहे हैं। इस सीरीज़ में भी बॉबी का डेडपैन ह्यूमर और रजत बेदी की ओवर-द-टॉप स्टाइलिंग दर्शकों को खूब भाती है। कास्टिंग टीम ने हर कलाकार को उसके हिस्से का चमकने का मौका दिया और लगभग सभी ने इसका भरपूर इस्तेमाल किया।

‘बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड’ हंसी-मज़ाक और व्यंग्य से भरी है। इसमें नेपोटिज़्म, कास्टिंग काउच और फेक फ्रेंडशिप्स जैसी गंभीर बहसों को हल्के-फुल्के अंदाज़ में पेश किया गया है। कई बार ऐसा लगता है कि सीरीज़ खुद अपने ऊपर मज़ाक कर रही हो। यही आत्म-व्यंग्य इसे अलग बनाता है। सीरीज़ के हर एपिसोड में एक नया ट्विस्ट दर्शकों को उत्सुक बनाए रखता है।

तकनीकी पहलुओं की बात करें तो सिनेमाटोग्राफी में ग्लैमर और यथार्थ, दोनों का सुंदर मिश्रण नज़र आता है। एडिटिंग: पेसिंग सधी हुई है। सात एपिसोड्स बिल्कुल सही लंबाई पर खत्म होते हैं। ‘बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड का संगीत ‘रेट्रो’ और ‘मॉडर्न बीट्स ‘का मेल सीरीज़ के टोन को और मज़बूत करता है।

कुल मिलाकर, ‘बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड’ एक हाईली एंटरटेनिंग सीरीज़ है। यह बॉलीवुड की चमक-दमक के पीछे की सच्चाइयों को व्यंग्य और हंसी के साथ सामने लाती है। आर्यन खान का यह डेब्यू बताता है कि वे आने वाले समय में हिंदी सिनेमा और वेब सीरीज़ की दुनिया के लिए बेहद अहम नाम साबित होंगे।

अगर आपको बॉलीवुड की दुनिया के “बैकस्टेज ड्रामे” को देखने और उस पर हंसने का मन है, तो ‘बैड्स ऑफ़ बॉलीवुड’ आपके लिए परफेक्ट है। नेटफ़्लिक्स पर है, देख लीजिएगा। (पंकज दुबे पॉप कल्चर स्टोरीटेलर, उपन्यासकार और चर्चित शो ‘स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़’ के होस्ट हैं।)

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