intellectual freedom

  • बौद्धिक स्वतंत्रता के दुश्मन

    जॉर्ज ऑरवेल ने लिखा है कि  कोई भी समाज तब सर्वाधिकारवादी हो जाता है जब उसकी संस्थाएँ सिर्फ नाम की रह जाती हैं — जब शासन के ढांचे तो बने रहते हैं, पर वे वास्तविक जिम्मेदारी निभाना छोड़ देते हैं। शासक वर्ग न तो अपने कर्तव्यों को निभाता है, न ही जवाबदेही स्वीकार करता है — पर फिर भी वह या तो बल प्रयोग से, या छल-कपट से सत्ता पर काबिज़ बना रहता है। ऐसे में संविधान, संसद, प्रेस — सब कुछ बना रहता है, लेकिन उनमें कोई आत्मा नहीं होती।...जब समाज में यह तय कर दिया जाए कि किन...