फिर रोजी-रोटी के सवाल बेमतलब?
गैर-भाजपा दल अगर प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं, तो मौजूदा comfort zone से बाहर निकल कर उन्हें राजनीति को नए सिरे समझने और परिभाषित करने की प्रतिभा दिखानी होगी। फिलहाल, काल्पनिक “जन नायक” परिघटना में आबद्ध और हार के बनावटी बहाने ढूंढ कर आगे बढ़ने का आसान रास्ता अपनाने वाली पार्टी या पार्टियों से उपरोक्त अपेक्षा करना उनकी क्षमता से कुछ अधिक मांगने जैसा लगता है। बहरहाल, यहां सवाल मांगने वाले का नहीं, बल्कि खुद इन दलों के अपने वजूद का है। क्या हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव नतीजों ने चार जून 2024 को जगी उम्मीदों पर पानी फेर दिया...