Jio

  • फिर कॉरपोरेट बेलआउट

    जब ऐसे कदम उठाए जाते हैं, तो उसके लिए तर्क गढ़ लिए जाते हैँ। रोजगार बचाना आम दलील है। वीआई के मामले में यह भी कहा गया कि कंपनी फेल हुई, तो बाजार में जियो और एयरटेल का द्वि-अधिकार हो जाएगा। आलोचक अक्सर कहते हैं कि मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था का वास्तविक अर्थ हैः फायदे का निजीकरण और घाटे का समाजीकरण। यानी जो फायदा हुआ, वह कंपनी मालिकों की जेब में जाएगा, लेकिन घाटा हुआ, तो उसे करदाताओं के पैसे भरा जाएगा। यह प्रवृत्ति अब बेहद आम हो चुकी। लेकिन इस कारण आर्थिक प्रबंधन का यह ढांचा आम जन की निगाह...

  • यही तो समस्या है

    बड़ी कंपनियों से अपेक्षा महज सर्विस प्रोवाइडर बन जाने की नहीं है। अपेक्षा भारत में आरएंडडी का ढांचा बनाने की है। वरना, एआई के मामले में अमेरिका या चीन पर निर्भर बने रहना भारत की नियति बनी रहेगी। रिलायंस इंडस्ट्री के बारे में कभी कहा जाता था कि उसके प्रवर्तक अपने मातहतों को “बड़ा सोचने” की सलाह देते हैं। कई दशकों के बाद अब सामने यह है कि उस “बड़ी सोच” का नतीजा कंपनी के मुनाफे में लगातार बढ़ोतरी और अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों पर मोनोपॉली कायम करने के रूप में जरूर आया, मगर उसका भारत में अनुसंधान- विकास (आरएंडडी)...