यह कैसा विकास जो सभी तरह डुबो रहा!
आखिर कौन विकास के मौजूदा बुलट ट्रेन समय में विचार व विवेक के समभाव की पदयात्रा कर सकता है? राज्यों के जन, और उनके जनसेवक अगर स्थानीय विकास पर जोर देते तो भारत कभी से विकसित राष्ट्र हुआ होता। समाज को ही एकजुट होकर संपोषणीय विकास या सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए आगे आना होगा। क्योंकि जीव परिस्थिति की समझ तो वहां जीने-बसने वालों से ही बनती है। असल विकास भी भविष्य में होने वाले जमीन या जलवायु परिवर्तन को जान-समझ कर ही किया जा सकता है। देश में जगह-जगह इकोलॉजी या जीव-पारिस्थितिकी की आपदा बढ़ती जा रही हैं। वायनाड और...