मध्यमार्गी लिबरल दलों को लोग वोट दें भी तो क्यों!
नव-उदारवाद का दौर आने के साथ सेंटर-लेफ्ट और सेंटर-राइट के बीच फर्क मिटता चला गया। दोनों तरह की पार्टियों में आर्थिक मुद्दों पर आम सहमति बन गई। दोनों बेलगाम पूंजीवाद और मुक्त बाजार की समर्थक हो गईं। उसके बाद वे सामाजिक-सांस्कृतिक एजेंडों के आधार पर अपनी पहचान पेश करने लगीं। सेंटर लेफ्ट का मतलब स्त्री अधिकार, एलजीबीटीक्यू अधिकार, आव्रजन के प्रति उदार नीति, आदि हो गया। सेंटर राइट आरंभ से परंपराओं की पोषक थी। ...अब लगभग हर देश में ऐसी पार्टियों से अधिक उग्र रुख अपनाने वाली चरमपंथी पार्टियां उभर आई हैं। नतीजा, नए किस्म का ध्रुवीकरण है। जर्मनी में...