शरद यादवः मंडल के पितामह!
ओह! शरद यादव नहीं रहे। मुझे तो उनसे मिलना था! कई बार सोचा लुटियन दिल्ली छोड़ कर शरदजी छतरपुर के नए घर शिफ्ट हुए हैं तो उनसे जा कर मिलना है। जीवन के उत्तरार्ध की उनकी शारीरिक-सियासी सेहत की खोज-खबर लेनी है। उनकी पत्नी रेखाजी और बेटे-बेटी से बातचीत करनी है। पर संयोग नहीं बना। तभी दिवगंत आत्मा को श्रद्धांजलि में यह ग्लानि दिल-दिमाग को छलनी कर दे रही है कि कैसे उनके सादे सहज-सरल परिवार को धैर्य बंधाऊं। कैसे शरदजी को याद करूं? हां, शरदजी और उनका परिवार मेरी निज जिंदगी का इसलिए हिस्सा रहे हैं क्योंकि पूरे परिवार...