ओह! वह समय और अब
सिर्फ दस साल पहले की बात है, मगर मानों ज़माना गुज़र गया हो। दस साल पहले भारत भूखा था नए विजन, नई दृष्टि का। हर कोई तरक्की और अच्छे दिनों के लिए फडफडाता हुआ था। दस साल पहले लग रहा था, सबकी फील थी, भारत बढ़ रहा है। भारतीय आगे बढ़ रहे हैं। आज, लफ्फाजी और प्रोपेगेंडा है। मैं, सन् 2007 में, स्काटलैंड में सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में पढ़ती थी। भारत की राजनीति की न सुध थी और न ज्यादा जानकारी। पतझड़ के आखिरी दिनों की एक सर्द दोपहर में, मैं, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर अपनी टुटोरिअल क्लास शुरू होने का...