Social Security

  • सिकुड़ती सामाजिक सुरक्षाएं

    जिस दौर में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं का लगातार निजीकरण होता गया हो- यानी जब ये सेवाएं मुनाफा प्रेरित सेवाओं में तब्दील हो गई हों और परिवहन लगातार महंगा होता जा रहा हो, सामाजिक सुरक्षाओं का सिकुड़ना गंभीर चिंता का पहलू है। भारत सरकार के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) से सामने आया यह आंकड़ा चिंताजनक है कि देश की श्रमशक्ति में 2022-23 में सिर्फ 21 प्रतिशत ऐसे कर्मचारी थे, जिन्हें नियमित तनख्वाह मिलती हो। 2019-20 में यह संख्या 23 प्रतिशत थी। यानी तीन साल में स्थायी नौकरी वाले कर्मचारियों की संख्या दो प्रतिशत गिर गई। इस सर्वे से...

  • जी-20 में श्रम सुधार पर चर्चा

    social security:- जी-20 के श्रम कार्य समूह की दो दिवसीय बैठक एक पृथ्‍वी, एक परिवार और एक भविष्‍य विषय के साथ आज बिहार की राजधानी पटना में शुरू हुई। बिहार के राज्‍यपाल राजेन्‍द्र विश्‍वनाथ आर्लेकर ने इस बैठक का उद्घाटन किया। श्री आर्लेकर ने अपने उद्घाटन भाषण में प्रतिनिधियों को श्रम मुद्दों और मानवाधिकार को समाहित करते हुए सामाजिक सुरक्षा पर चर्चा करने के लिए प्रोत्‍साहित किया। उन्‍होंने कहा कि इन मुद्दों पर व्‍यापक रूप से विचार करने से हम वंचित वर्ग के लोगों की शिकायतों का समाधान कर सकेंगे। श्रम कार्य समूह एल-20 के अध्‍यक्ष हिरणमय पांडया ने कहा...

  • सामाजिक सुरक्षा प्राथमिकता से बाहर!

    भारत लोक कल्याणकारी राज्य है इसके बावजूद देश में सामाजिक सुरक्षा की गारंटी नहीं है। पश्चिम के विकसित और सभ्य लोकतांत्रिक देशों की तरह भारत में सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली कोई योजना नहीं है। पिछली सरकारों ने अधिकार आधारित कुछ योजनाएं जरूर बनाई हैं, लेकिन उन्हें सामाजिक सुरक्षा की योजना नहीं कह सकते। कानून बना कर शिक्षा का, भोजन का, रोजगार का या सूचना का अधिकार तो नागरिकों को दिया गया है लेकिन इन पर सार्वभौमिक अमल सरकारों की मर्जी पर निर्भर करता है। जैसे अभी केंद्र सरकार ने सामाजिक सुरक्षा की दो बड़ी योजनाओं के बजट में कटौती...