सिकुड़ती सामाजिक सुरक्षाएं
जिस दौर में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं का लगातार निजीकरण होता गया हो- यानी जब ये सेवाएं मुनाफा प्रेरित सेवाओं में तब्दील हो गई हों और परिवहन लगातार महंगा होता जा रहा हो, सामाजिक सुरक्षाओं का सिकुड़ना गंभीर चिंता का पहलू है। भारत सरकार के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) से सामने आया यह आंकड़ा चिंताजनक है कि देश की श्रमशक्ति में 2022-23 में सिर्फ 21 प्रतिशत ऐसे कर्मचारी थे, जिन्हें नियमित तनख्वाह मिलती हो। 2019-20 में यह संख्या 23 प्रतिशत थी। यानी तीन साल में स्थायी नौकरी वाले कर्मचारियों की संख्या दो प्रतिशत गिर गई। इस सर्वे से...