समय, दुनिया सब बिगड़ रहे, वजह हम है!
बहुत ही अजब दौर में जी रहे है हम। ज़रा नज़र डालिए चारों तरफ—सिर्फ़ अख़बारों की सुर्खियों में नहीं, बल्कि आपके इनबॉक्स में, रात के खाने की मेज़ पर पसरी अजीब चुप्पी में, उन दोस्तों की कसक में जो कभी अपनत्व पर टिके रिश्तों में ढली हुई थी। अब दोस्ती, संबंध असुरक्षा, जलन और अहम की कड़वाहट से भरते जा रहे हैं। आज हर कोई किसी न किसी लड़ाई में उलझा है—व्यक्तिगत, राजनीतिक, और इसीलिए वैश्विक। आख़िर देश भी इंसानों का ही एक बड़ा, बढ़ा-चढ़ा प्रतिबिंब है? दुनिया आज हर पैमाने पर युद्ध में उलझी हुई है—कहीं बड़ा युद्ध, कहीं...