अरे, ढूंढो अब कविता को!
मेरा भारत के समय में पहले भान था देश बिना कविता के हो गया है! पर अब तो दुनिया भी बिना कविता के है! ‘दि इकॉनोमिस्ट’ के ताजा अंक से यह जान धक्का लगा कि एक समय था जब कवि अपनी कविता बेच कर जिंदगी बसर करते थे। लॉर्ड बायरन की “द कॉर्सेयर” (The Corsair) की एक दिन में दस हजार प्रतियां बिकी थीं। लेकिन अब पश्चिम में कवि ‘कविता’ से नहीं, ‘कवि’ होने से रोज़ी कमाते हैं! विश्वविद्यालयों में नौकरी, ग्रांट और पुरस्कार ही कविता की आजीविका हैं। न कविता लिखी जा रही है और न कविता पढ़ी जा...