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  • ‘पंचायत 4’ : लौकी जैसी सादगी

    'मालगुडी' और 'फुलेरा' दोनों की दुनिया और किरदारों में जादुई सादगी, सहजता, सरलता के साथ साथ मानवीय संबंधों की खूबसूरती और उनकी स्वाभाविकता की छटा है। इनकी ओरिजिनालिटी हमारे आस-पास की दिखावटी और दूसरों की लाइक्स और कमेंट्स से ख़ुद के लिए क्षणिक वैलिडेशन बटोरने वाली संस्कृति से आहत संप्रदाय के लिए मरहम का काम करती है। ऐसे कॉन्टेंट उम्मीद देते हैं कि चाहे जितनी भी गोलियों और गालियों की बौछार वाली कहानियां आएं, एक दिन लोहे के पेड़ फिर से हरे होंगे और सब ठीक हो जाएगा।  सिने-सोहबत फ़र्ज़ कीजिए कि पहले जब कभी भी कोई शरारती बच्चा सोता...