World Bank Report

  • नया आकलन, नई कथा!

    जिन्हें न्यूनतम जीवन स्तर के लिए जरूरी सुविधाएं ना मिल पाएं, उन्हें गरीब नहीं तो क्या कहा जाएगा? भारत में गरीब सिर्फ 5.3 प्रतिशत लोग हैं, तो बाकी 20 प्रतिशत लोग, जो अनिवार्य सुविधाओं से वंचित हैं, उन्हें किस श्रेणी में रखा जाएगा? कुछ ही समय पहले विश्व बैंक की एक रिपोर्ट भारत में जश्न का विषय बनी। उसमें कहा गया कि भारत में 2022-23 में चरम गरीबी की अवस्था में सिर्फ 5.3 प्रतिशत आबादी बची, जबकि 2011-12 में ऐसे लोगों की संख्या 27.1 फीसदी थी। विश्व बैंक ने ये रिपोर्ट प्रति दिन तीन डॉलर (2021 के मूल्य पर क्रय...

  • आंकड़ों का फेर है

    गरीबी के आंकड़ों में (हेर)फेर से क्या वंचित लोगों की जिंदगी बदल जाएगी? क्या जिस बुनियादी अभाव एवं असुरक्षाओं में वे जीते हैं, उनमें सुधार हो जाएगा? मगर आंकड़े बनाने वालों का वह मकसद भी नहीं है। विश्व बैंक ने बीते हफ्ते गरीबी मापने के अपने पैमाने को “अपडेट” किया। पहले पैमाना थाः 2017 की परचेजिंग पॉवर पैरिटी (पीपीपी) आधारित प्रति दिन 2.15 डॉलर खर्च क्षमता। अब 2021 की पीपीपी के आधार पर रोजाना खर्च क्षमता को तीन डॉलर कर दिया गया है। इसका परिणाम हुआ कि पहले जहां दुनिया की नौ प्रतिशत आबादी गरीब समझी जाती थी, अब ये...

  • आंकड़ों का मकड़जाल है

    भारत सरकार के तमाम आंकड़े अपने-आप में विवादित रहे हैं। वैसे विश्व बैंक ने नव-उदारवादी दौर में गरीबी मापने के लिए रोजाना खर्च क्षमता का जो पैमाना दुनिया भर में प्रचारित किया, वह अपने-आप में विवादास्पद रहा है। विश्व बैंक ने भारत में गरीबी के बारे में अपना आकलन जारी किया है। इससे आम सूरत यह उभरी है कि भारत में गरीबी घटी है। विश्व बैंक ने आधार भारत सरकार के उपभोग सर्वेक्षणों को बनाया है। 2011-12 और 2022-23 के घरेलू उपभोग खर्च सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़ों की तुलना करते हुए विश्व बैंक इस नतीजे पर पहुंचा कि उपरोक्त दशक...