Yunhi Sath Sath Chalte

  • “यूं ही साथ-साथ चलते”

    भोपाल। जीवन में मैं से हम हो जाने का अपना आनंद होता है और कौन दंपत्ति जीवन का यह आनंद नहीं चाहता लेकिन यह भी सच्चाई है कि मैं से हम होने की राह इतनी आसान नहीं होती। डॉ. सच्चिदानंद जोशी लिखित और अभिनीत नाटक 'यूं ही साथ-साथ चलते’ में एक प्रौढ़ दंपत्ति के मैं से हम होने का उलझन भरा लेकिन बेहद रोचक सफर से दर्षक रुबरू होता है। प्रेमी प्रेमिका से दंपत्ति बन गये पति पत्नी यानी सच्चिदानंद जोषी और मालविका जोषी ने पति पत्नी के संबंधों के प्रेम, नोकझोंक, उलाहना और विबषता को इतनी सहजता से प्रस्तुत...