• हबीब तनवीर की याद में

    भोपाल। विश्व के महान रंग निर्देशक, अभिनेता, नाटककार हबीब तनवीर साहब की जन्म शताब्दी के अवसर पर इंदिरा कला संगीत विश्व विद्यालय के रंगमंच विभाग द्वारा व्याख्यान का आयोजन किया गया। रंगमंच विभाग के प्रमुख एवं अनुभवी रंग निदेशक डाॅ. योगेन्द्र चैबे की अगुवाई में हबीब साहब के निधन 2009 के बाद से अब तक लगातार उनकी जन्म तिथि पर ऐसा आयोजन होता रहा है जिसमें देश के नाम गिरानी रंगकर्मियों व विशेषज्ञों की भागीदारी रही है। इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय एशिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है जिसका परिसर अपनी अलग पहचान रखता है। विश्वविद्यालय के...

  • ‘किलकारी’ की रंगमंचीय गूंज

    भोपाल। कुछ साल पहले चर्चित फिल्म ’सुपर-30’ का निर्माण हुआ था। इस फिल्म में कलाकारों के चयन के लिये प्रसिद्ध कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा पटना आये हुए थे। उन्होंने फिल्म के लिये जिन 30 बच्चों का चयन किया उसमें 16 बच्चे वे थे जो किलकारी पटना में रंगमंच का प्रशिक्षण ले रहे थे। बड़े गर्व और खुशी के साथ किलकारी के रंग प्रशिक्षक रवि मुकुल बताते हैं कि किलकारी में रंग प्रशिक्षण ले रहे बच्चे थियेटर में तो सक्रियता से काम कर ही रहे हैं, साथ ही रियलिटी शो और फिल्मों में भी उनको काम करने का मौका मिल रहा...

  • एक जुनूनी रंगकर्मी का रंग आंदोलन

    भोपाल । मुम्बई का पृथ्वी थियेटर नाट्य मंचन के लिये एक जाना पहचाना प्रतिष्ठित स्थान लंबे समय से बना हुआ है। इसकी प्रतिष्ठा के पीछे बड़ा कारण यह रहा है कि मुम्बई में हिन्दी रंगमंच को स्थापित करने में पृथ्वी थियेटर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। देश के नामचीन रंग निर्देशकों की यह जगह पहली पसंद रही है जहां वे अपने नाटकों का मंचन करते रहे हैं। यहां होने वाले नाटकों के दर्षकों में भी रंगमंच और सिनेमा के बड़े नाम शामिल रहे हैं। अब जिस पैमाने पर मुम्बई में हिन्दी में नाटक तैयार हो रहे हैं, उनके मंचन के...

  • दो दशक बाद फिर बज्जू भाई का ‘अंधा युग’

    भोपाल। नाटक शुरू होते ही नेपथ्य में आवाज गूंजती है, सूत्रधार के नैरेशन की। यह जानी पहचानी आवाज है प्रो. रामगोपाल बजाज की जिसका जादू दर्शकों को बांध लेता है। भारतीय रंगमंच के शीर्ष निदेशक रामगोपाल बजाज के निदेशन में कोई नाटक देखना दुर्लभ अनुभव होता है। काफी समय से उन्होंने कोई नाटक संभवतः तैयार नहीं किया है। हाल ही में भारत भवन में आयोजित नाट्य समारोह में उनके निर्देशन में तैयार नाटक 'अंधा युग’ देखने को मिला। इस समारोह में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रेपटरी कंपनी के तीन नाटकों का मंचन किया गया लेकिन बज्जू भाई प्रो. बजाज की...

  • थियेटर की महक है “कटहल” में

    भोपाल। थियेटर व फिल्मों का जितना करीबी रिष्ता इन दिनों देखने को मिलता है, वैसा पहले शायद नहीं रहा। थियेटर से फिल्मों व टी.वी. सीरियल में गये कलाकारों ने फिल्मों को एक नया कलेवर व मुहावरा दिया है। अनेक रंगकर्मी फिल्मों में भी बेहतरीन काम कर रहे है और थियेटर में भी अपनी सक्रियता बनाये हुए हैं। शबाना आजमी, स्व. फारूख शेख, नसीरूद्दीन शाह, राजेन्द्र गुप्ता, हिमानी षिवपुरी यषपाल शर्मा जैसे कई प्रसिद्ध रंगकर्मियों ने जहां फिल्मों में अपने को से नये आयाम गढ़े हैं तो उसी के समांनातर थियेटर को भी लगातार समृद्ध करते रहे हैं। ये रंगकर्मी न...

  • दमन का कॉमिक प्रतिकार है ‘बागी अलबेले’

    भोपाल। मैं किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचता हूँ जिसे हंसी ही नहीं आती और जो कभी हंसा ही नहीं। क्या वह नाटक ’बागी अलबेले’ देखते हुए भी ऐसा ही रह सकता है। नहीं, ऐसे व्यक्ति को भी हंसने के लिये मजबूर कर देगा इस नाटक का आल्हादित करने वाला हास्य। देश में कुछ रंग निदेशक ऐसे हैं जिनके नाटकों का प्रदर्शन प्रायः महानगरों तक सीमित रहता है लेकिन वे अपने आप में अद्वितीय होते हैं। इन नाटकों को देखकर आपकी न केवल रंगमंच की समझ समृद्ध होती है वरन् एक नये जीवन अनुभव से भी गुजरते हैं। ऐसे...

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