Thursday

31-07-2025 Vol 19

पुराने और नए दर्शकों का फ़र्क

657 Views

‘पठान’ के बारे में आप नौजवानों से बात करके देखिए। एक लड़के का कहना था, ‘अरे सर क्या एक्शन है। शाहरुख ऐसा तो कभी था ही नहीं। जॉन अब्राहम पर भी भारी। एक्शन, डांस, म्यूज़िक, सब इतना मस्त।‘ इस लड़के के लिए मानो एक्शन ही अभिनय था। जितना तेज एक्शन, उतना ही अच्छा अभिनय। इस हिसाब से तो ‘पठान’ बेहतर अभिनय की पराकाष्ठा हुई। विदेशों में भी जिन लोगों ने ‘पठान’ को हिंदी की अब तक की सर्वाधिक कमाई वाली फिल्म बना दिया उनमें भी युवा ज्यादा हैं। पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान से एक इंटरव्यू में पूछा गया कि आपकी पसंदीदा राजनीतिक पार्टी कौन सी है तो उन्होंने जवाब दिया, ‘अभी जो ‘पठान’ फिल्म आई है, मुझे बहुत अच्छी लगी।’ ‘पठान’ के बहाने उन्होंने इमरान खान की ओर इशारा किया। माहिरा ‘रईस’ में शाहरुख के साथ काम भी कर चुकी हैं। मगर उसी पाकिस्तान के एक अभिनेता यासिर हुसैन ने ‘पठान’ को किसी कहानी विहीन वीडियो गेम जैसा बताया है। शायद यासिर उन युवाओं में हैं जिनके लिए कहानी एक्शन से ज्यादा महत्व रखती है।

हमारे यहां पुरानी पीढ़ी के ज्यादातर लोग आपको ‘पठान’ से यही शिकायत करते मिलेंगे। कुछ तो कहते हैं कि ‘आरआरआर’ और ‘केजीएफ’ को ही मैं नहीं झेल पाया, तो फिर ‘पठान’ कैसे देख पाता। अजीब बात है। इतनी ज्यादा चलने वाली फिल्म पर इतना मतभेद। क्या यह फिल्मी गानों जैसा मामला है? पुराने लोगों को नए दौर के गीत बिलकुल नहीं सुहाते। बल्कि वे किसी नौजवान को कोई नया गीत गुनगुनाते देख अचंभित होते हैं कि अरे, इतना फालतू गीत इसे याद कैसे रहा। मगर ध्यान रखिए, नौजवानों के लिए जो आज हो रहा है वह ज्यादा अहम है। वे तो उसी से गढ़े जा रहे हैं। जबकि पुराने लोग उस मैलोडी से बाहर नहीं निकल पा रहे जो गुज़र चुकी है। फिर भी, अच्छी कहानी वाली फिल्मों को नौजवान भी पसंद करते हैं और पुराने लोग भी। यानी सिर्फ कहानी बची है जो दोनों पीढ़ियों के दर्शकों को एक ही पायदान पर ला सकती है। बशर्ते कि उसका फिल्मांकन भी बेहतर हो।

सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *