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अमेरिका क्या बरबादी न्योतेगा?

अपन तो कहेंगे
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अमेरिका क्या बरबादी न्योतेगा?
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नमस्कार, मैं हरिशंकर व्यास। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए अब गिनती के दिन रह गए हैं। ऐसे में अमेरिका ही नहीं दुनिया के सामने एक ही सवाल कि क्या अमेरिकी जनता सिर्फ मैं ही मैं की सोच वाले उस डोनाल्ड ट्रंप को चुनकर बर्बादी को न्योता देगी जो बदले की भावना से ग्रस्त हैं या फिर स्वंतत्र,  लोकतांत्रिक और समानता की सोच पर मुहर लगाकर अमेरिका के मल्टी कल्चर को और पुख्ता बनाएगी। दरअसल हाल के कुछ दिनों में डोनाल्ड ट्रंप ने अपने प्रचार के दौरान जिन हथकंडों को अपनाया है उससे उनकी वोटों के धुव्रीकरण की सोच को आसानी से समझा जा सकता है और अगर वो कामयाब होते हैं तो फिर ये इक्कीसवीं सदी में जरासंध के पैदा होने जैसा होगा। तभी इस बार का अमेरिकी चुनाव बहुत ही दिलचस्प और खास है अमेरिका के लिए भी और दुनिया के लिए भी। इसीलिए अपन तो कहेंगे कॉलम में इस बार मेरे विचार का शीर्षक है अमेरिका क्या बरबादी न्योतेगा?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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