दिल्ली सरकार के अधिकारियों की नियुक्त और तबादले को लेकर केंद्र सरकार की ओर से जारी अध्यादेश का बचाव कायदे से भाजपा को करना था लेकिन भाजपा के नेता वह काम नहीं कर पाए। प्रदेश भाजपा के नेता अनाप-शनाप बयान देते रहे। चाहे प्रदेश अध्यक्ष हों या पूर्व प्रदेश अध्यक्ष या पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सब इतना कहते रहे कि केजरीवाल सत्ता के भूखे हैं और मनमानी के लिए अधिकारियों का नियंत्रण अपने हाथ में रखना चाहते हैं। लेकिन किसी ने तकनीकी और कानूनी पहलू पर चर्चा नहीं की। किसी ने यह नहीं बताया कि 1993 में विधानसभा बहाल होने और पहली सरकार बनने के बाद किसी भी मुख्यमंत्री के हाथ में अधिकारियों का नियंत्रण नहीं रहा है। सोचें, जब मदनलाल खुराना, साहेब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के हाथ में अधिकारियों का नियंत्रण नहीं रहा तो अरविंद केजरीवाल को क्यों चाहिए?
माकन ने बहुत विस्तार से समझाया कि पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, लाल बहादुर शास्त्री और पीवी नरसिंह राव तक सभी प्रधानमंत्रियों ने दिल्ली सरकार के अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति का अधिकार केंद्र के पास ही रहने का समर्थन किया। इसका कारण यह है कि दिल्ली किसी दूसरे केंद्र शासित प्रदेश की तरह नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय राजधानी है और इस पर सबका हक है। उन्होंने बताया कि अंबेडकर कमेटी की सिफारिश पर नेहरू और पटेल ने चीफ कमिश्नर के हाथ में दिल्ली का प्रशासन दिया था, जो सीधे केंद्र का रिपोर्ट करते थे। दिल्ली में प्रशासन का अभी जो मौजूदा स्वरूप है वह 1991 वह केंद्र की नरसिंह राव सरकार के बनाए कानूनों के मुताबिक है। माकन ने बताया कि केंद्र सरकार हर साल दिल्ली पर साढ़े 37 हजार करोड़ रुपए खर्च करती है।