nayaindia ramcharitmanas controversy राजद, सपा, आप की एक जैसी राजनीति

राजद, सपा, आप की एक जैसी राजनीति

समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और आम आदमी पार्टी भले अलग अलग राज्यों की पार्टियां हैं लेकिन कुछ मामलों में इनकी राजनीति बिल्कुल एक जैसी है। जैसे रामचरित मानस को बदनाम करने और उसको दलित-पिछड़ा विरोधी बताने की राजनीति में तीनों पार्टियां एक जैसे काम कर रही हैं। तीनों पार्टियों के पिछड़े या दलित नेताओं ने रामचरित मानस का विरोध किया, पार्टियों के सर्वोच्च नेता इस पर चुप रहे और फिर कुछ सवर्ण नेताओं ने इन बयानों का विरोध किया। अंत में किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसे जाहिर होता है कि यह पार्टियों के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा है।

सबसे पहले विवाद की शुरुआत की बिहार के राजद नेता चंद्रशेखर ने। वे नीतीश कुमार की सरकार में शिक्षा मंत्री हैं और यादव समाज से आते हैं। उन्होंने रामचरित मानस की एक चौपाई की मिसाल देकर कहा कि यह समाज में विद्वेष फैलाने वाले ग्रंथ है। एक चौपाई के आधार पर उन्होंने इसे पिछड़ा और दलित विरोधी बताया। इस पर विवाद हुआ तो सफाई देने की बजाय पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने उनकी पीठ थपथपाई और शाबासी दी। पार्टी के बड़े नेता चुप रहे। विवाद बढ़ने के बाद पार्टी के जो नेता विरोध में उतरे वो सब सवर्ण नेता था। राजद की ओर से शिवानंद तिवारी ने चंद्रशेखर के बयान का विरोध किया। उसके बाद राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने विरोध किया। किसी दलित, पिछड़े नेता ने चंद्रशेखर के बयान का विरोध नहीं किया।

इसके बाद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस का विरोध किया। उन्होंने एक दूसरी चौपाई के आधार पर इसका विरोध करते हुए कहा कि यह ग्रंथ बकवास है और इस पर पाबंदी लगा देनी चाहिए। दिलचस्प तथ्य है कि सपा की ओर से भी किसी पिछड़े या दलित नेता ने मौर्य की इस बात का विरोध नहीं किया। पार्टी इस पर चुप रही। बड़े नेताओं ने दूरी बनाई और मौर्य की बात का जवाब देने के लिए मनोज पांडे आगे आए। वे विधानसभा में समाजवादी पार्टी के मुख्य सचेतक हैं। इसी तरह आम आदमी पार्टी के विधायक राजेंद्र पाल गौतम ने बिहार के मंत्री चंद्रशेखर के बयान का समर्थन किया। ध्यान रहे गौतम पहले ही हिंदू धर्म ग्रंथों को लेकर विवादित बयान दे चुके हैं, जिसकी वजह से उनको मंत्री पद से हटना पड़ा था। हालांकि रामचरित मानस पर उनके बयान को लेकर भाजपा की मांग के बावजूद पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की है।

तभी यह कोई अनायास दिया गया बयान नहीं दिख रहा है। यह सुविचारित है और योजना के तहत इसे मुद्दा बनाया गया है। मंडल की राजनीति करने वाली बिहार की दोनों सत्तारूढ़ पार्टियां और उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी को हिंदुत्व और मंदिर के मुद्दे की काट जाति की आक्रामक राजनीति में दिख रही है। जाति की राजनीति के साथ साथ इन पार्टियों ने भगवान राम, अयोध्या और मंदिर राजनीति के मूल स्रोत यानी रामचरित मानस को ही प्रदूषित करना शुरू कर दिया है। ये पार्टियां दलितों, पिछड़ों के दिमाग में यह बात बैठा रही हैं कि मानस सवर्णों का ग्रंथ है और दलित, पिछड़ा विरोधी है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें