दुनिया के तमाम बड़े, विकसित और लोकतांत्रिक देशों में भारत के दूतावासों, उच्चायायोगों और वाणिज्य दूतावासों पर हमले हो रहे हैं। खालिस्तान के पक्ष में प्रदर्शन कर रहे संगठन हिंदुओं के ऊपर हमला कर रहे हैं। तिरंगे का अपमान किया जा रहा है। लेकिन भारत सरकार इसका निर्णायक तरीके से प्रतिकार नहीं कर पा रही है। जिस देश में इंडियन मिशन के ऊपर हमला होता है सरकार वहां के राजनयिक प्रतिनिधियों को बुला कर विरोध दर्ज करा रही है लेकिन उससे कुछ नहीं हो रहा है। यह देखना भी दिलचस्प है कि एक एक करके भारत सरकार ने कितने देशों के राजनयिक प्रतिनिधियों को बुला कर आपत्ति और नाराजगी दर्ज कराई। उसमें भारत रिकॉर्ड बना रहा है लेकिन उससे विदेश में इंडियन मिशन और भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो रही है।
पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज भारत के दौरे पर आए थे तब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सेल्फी ली थी, जिसे लेकर सोशल मीडिया में बड़ा शोर हुआ कि देखो दूसरे देश का प्रधानमंत्री हमारे प्रधानमंत्री के साथ सेल्फी लेता है। अल्बानीज ने भरोसा भी दिलाया था कि वे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। लेकिन उनके लौटने के एक हफ्ते के भीतर ब्रिस्बेन में भारत के वाणिज्य दूतावास को खालिस्तान समर्थकों ने घेर लिया और कर्मचारियों को अंदर नहीं जाने दिया। भारत इस मामले में कुछ नहीं कर सका।
उसके बाद ब्रिटेन में भारत के उच्चायोग के बाहर लगे तिरंगे को खालिस्तान समर्थकों ने उतार दिया। उसके बाद भारत सरकार सिर्फ इतना कर पाई कि उससे बड़ा तिरंगा वहां लगा दिया। दिल्ली में भारत ने ब्रिटेन के एक वरिष्ठ राजनयिक को बुला कर आपत्ति दर्ज कराई। कनाडा में भारत के उच्चायोग और वाणिज्य दूतावासों पर हमले हुए तो कनाडा के उच्चायुक्त को बुला कर नाराजगी जताई गई। अब वाशिंगटन में खालिस्तान समर्थकों ने भारत के एक राजनयिक को खुली धमकी दी। राजनयिक के नाम का बैनर लगा कर उनको चेतावनी दी। साथ ही प्रदर्शनकारियों ने एक भारतीय पत्रकार के ऊपर हमला भी किया। सीक्रेट सर्विस के लोगों ने पत्रकार को हमले से बचाया। सो, अगर भारत के पास सचमुच ताकत है और दुनिया प्रधानमंत्री की बात सुनती है तो हर हाल में वह ताकत दिखानी चाहिए ताकि इंडियन मिशन और भारतीय लोगों की रक्षा हो सके।