हमारे दतिया के एक पब्लिक इंटलेक्चुअल
दूसरी भारतीय भाषाओं — बंगाली, मलयालम, तेलुगु, मराठी — में वहां के साहित्यकार अपने छोटे शहरों में रहते हुए भी राष्ट्रीय पहचान बना लेते हैं। मगर हिन्दी में जो दिल्ली नहीं आया, उसकी प्रतिभा और काम उतना सामने नहीं आ पाता जितना आना चाहिए। पांडेय जी इसी त्रासदी के मूक नायक रहे — एक ऐसे पब्लिक इंटलेक्चुअल, जिन्होंने मंच, माइक, कविता, शोध और स्मृति — सबको एक गहरी मानवीय भाषा में बाँध दिया। स्मृति- डॉ. केबीएल पांडेय अब ऐसा होता नहीं कि शहर में एक शून्य हो जाए और वह किसी नेता या किसी दूसरे क्षेत्र की अजीम हस्ती के...