आधुनिक खेती से तबाह हुई परंपरागत खेती
जैसे वेदों की ऋचाएं पीढ़ी दर पीढ़ी स्मृति से आगे बढ़ती थीं, वैसे ही किसान अपने अनुभव और ज्ञान को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाते थे। इन अनुभवों ने धीरे-धीरे कहावतों और लोकोक्तियों का रूप ले लिया। ‘घाघ’ और ‘भड्डरी’ जैसे लोकज्ञानी आज भी किसानों की जुबान पर हैं — उनकी कही बातें आज भी वैज्ञानिक परीक्षण में खरी उतरती हैं। पुराने समय में गांवों की संरचना ही ऐसी होती थी जिसमें सिर्फ मनुष्य नहीं, पशुओं के लिए भी जगह होती थी — चारागाह, गोचर, तालाब, पोखर। हर गांव में अनाज, दाल, तिलहन, सब्जी और फल — सब कुछ पैदा होता...