जब जांच ही सज़ा बन जाये- तब अदालतों का फर्ज क्या हो…?
भोपाल। यह सवाल मोदी सरकार के निज़ाम में काफी महत्वपूर्ण है, क्यूंकि जांच के नाम पर सभी केन्द्रीय जांच एजेंसियां गैर बीजेपी दलों के नेताओं की जांच के नाम पर उन्हें हिरासत में लेकर अपराधियों का लेवल चिपकाने का काम करती हैं। हालांकि सरकार के आलोचकों को भले ही जेल में दाल दिया हो परंतु उनके खिलाफ, कानूनी की दस्तावेजी, कारवाई में जांच एजेन्सियां अदालत में सिर्फ और समय मांगती नजर आती हैं। जितनी जल्दबाज़ी ये एजेंसियां गिरफ्तारी करने में करती हैं, वह रफ्तार अदालत में जैसे ठिठक जाती हैं। आखिर सर्वोच्च न्यायालय कब इन जांच एजेंसियों से यह सवाल...