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journalism

  • भोंपू-पत्रकारिता का अमृत-दशक

    सब-कुछ कुछ मुट्ठियों में जा रहा है और सब ख़ामोश बैठे हैं। चंद कंगूरे सब-कुछ लील रहे हैं और सब चुप्पी साधे हैं। इनेगिने सब-कुछ हड़प रहे हैं और सब मौन धारे हैं। समाचार-कक्ष बारात के बैंड-बाजे में तब्दील हो गए हैं। बाकी मुल्क़ ‘आज मेरे यार की शादी है’ की धुन पर नाचता ही चला जा रहा है।...इतना सन्नाटा तो श्मशान में भी नहीं होता है, जितना इन दिनों हमारे मन-मस्तिष्क में है।...यह गर्व की बात है या शर्म की कि जिन तीन वर्षों में देश की 60 फ़ीसदी आबादी मुफ़्त राशन की मेहरबानी पर ज़िंदा है, उन तीन...

  • पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के पाकिस्तानी पत्रकार के साथ संपर्क पर भाजपा ने तस्वीर साझा कर किए ये दावे…

    नई दिल्ली | Hamid Ansari Pakistani Journalist : पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को लेकर पाकिस्तान में दिए जा रहे बयानों के बाद भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने आ गई है. एक पत्रकार के साथ कथित तौर पर संपर्क रहने के मुद्दे पर भाजपा ने एक बार फिर से कांग्रेस पर प्रहार किया. एक तस्वीर का हवाला देते हुए दावा किया गया कि भारत में एक सम्मेलन के दौरान उन दोनों ने मंच साझा किया था. बता दें कि पाकिस्तान के एक पत्रकार नुसरत मिर्जा ने दावा किया था कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल के दौरान उसने 5 बार...

  • खेल पत्रकारिता का सबसे बुरा दौर!

    क्रिकेट की हार जीत और अच्छे खराब प्रदर्शन की हर खबर प्रचार माध्यमों पर जगह पा जाती  है लेकिन बाकी खेलों के साथ ऐसा नहीं है। उन पर प्रचार माध्यम तब ही मेहरबान होते हैं जब कोई खिलाड़ी, ओलम्पिक, एशियाड या विश्व स्तर पर पदक जीतता है या कोई बड़ा सम्मान अर्जित करता है। खासकर स्थानीय (लोकल) ख़बरों के लिए देश के मीडिया में कोई जगह नहीं बची है। Worst era sports journalism पिछले कुछ सालों में भारतीय खेल पत्रकारिता के रूप स्वरुप में भारी बदलाव देखने को मिला है, जिसे लेकर ओलम्पिक खेलों से जुड़े खिलाड़ी, अधिकारी और खेल...

  • पत्रकारिता के क्षेत्र में गिरावट क्यों…? पत्रकार बदनाम क्यों…?

    बदलते समय और बदलती सोच के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन गिरावट आ रही है इस मुद्दे पर आज देश में  गर्मा गरम बहस भी छिड चुकी है। देश के लोकतंत्र dका मजबूत चौथा स्तम्भ(शेर) कहा जाने वाला पत्रकारिता का क्षेत्र भी अब इस भ्रष्टाचार से अछूता नही रहा। आज पैसे की चमक ने पत्रकारिता के मिशन को व्यवसाय बना दिया। ये ही कारण है कि आज देश में भ्रष्टाचार के कारण हाकाहार मचा है। मंहगाई आसमान छू रही है। राजनेता, अफसर देश को लूटने में लगे है और गुण्डे मवाली, सफेद खद्दर में संसद भवन में पिकनिक...

  • ‘भय’ नेचुरल पर ‘भयाकुलता’ विकार!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • ‘सत्ता’ संग ही 47 में ‘भय’ भी ट्रांसफर!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • हम हिंदुओं के पोर-पोर में ‘भयाकुलता’!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • खेल पत्रकारिता भी खत्म है!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • पत्रकारिता या सेकुलर-सांप्रदायिक कलह?

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • उद्यमिता व निर्भयता का टोटा

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • मुग्ध और फिदा पत्रकारिता!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • आजादी से पहले पत्रकारिता थी निर्भीक!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • जैसे हम, वैसी हमारी पत्रकारिता!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • भारतीय पत्रकारिताः मुग्धता से समर्पण तक!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • पत्रकारिता खोखली तो देश, आजादी सब खोखली!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • माई-बाप सरकार की पालतू प्रजा और पत्रकारिता!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • पत्रकारिता और आजादी का अर्थ!

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • ट्विटर और टीवी की निरंकुशता

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • हिंदी पत्रकारिता दिवस पर बधाई

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

  • ‘स्वतंत्र’ पत्रकारिता के खतरे

    75 वर्षों के अपने सफर में ‘भयाकुलता’ वह विकार है, जिससे हम हर तरह से बाधित हुए हैं। इसके परिवेश से न अंग्रेजों की व्यवस्था याकि पिंजरे से बाहर निकलना संभव हुआ और न स्वतंत्रता व लोकतंत्र का सच्चा अनुभव प्राप्त है। तमाम नए आधुनिक प्रयोगों, जुगाड़ों के बावजूद घूम-फिरकर बेताल पचीसी की जस की तस पहेली! भयाकुलता में न सत्ता का चरित्र बदलने का साहस हुआ और न लोग बदले। लोगों को निर्भय, निडर बनने-बनाने की तनिक भी चिंता, सोच और कोशिश नहीं। Fear DNA free journalism ‘भय’ हमारा डीएनए तब कैसे आजाद पत्रकारिता? -3: इतिहास सत्य बताते हुए है।...

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