स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया को जमानत मिल गई है। लेकिन उनकी गिरफ्तारी और उन्हें जेल भेजे जाने की घटना से कई अहम सवाल उठ खड़े हुए हैं। ये सवाल मीडिया की आजादी और पत्रकारों के दमन से संबंधित हैं।
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक अख़बार के मालिक-संपादक के निधन के बाद उनके परिवार से भोपाल का सरकारी बंगला फटाफट खाली करवा लिया।
मोर-पंखी मीडिया को अपने पांवों की तरफ़ संजीदगी से देखने का अगर यह भी वक़्त नहीं है तो समझ लीजिए कि हमारे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कलियुगी काले-सूराख़ का गुरुत्वाकर्षण-बल इस क़दर लील चुका है कि वेद व्यास ख़ुद भी अवतार ले लें तो उसे उबार नहीं सकते।
क्या कभी वह दिन भी आ सकता है जब अख़बार बिना पत्रकारों के निकलें और न्यूज चैनल बगैर पत्रकारों के चलें? आज की भयावह स्थिति को देखते हुए यह कोई असंभव बात नहीं लगती।
एक मित्र ने मुझे कुछ फर्जी पत्रकारो की गिरफ्तारी के बारे में सूचनाएं भेजी हैंऔर बताया है कि कुछ लोग पत्रकार न होते हुए भी फर्जी पत्रकार बनकर हालात का फायदा उठा रहे हैं।
कोरोना की वजह से देश व दुनिया में भले ही कितना ज्यादा नुकसान पहुंचे मगर मेरा मानना है कि इससे कुछ ऐसे लाभ भी हौ जिनकी हम कभी कल्पना नहीं कर सकते हैं। समाचार चैनलो पर बताया जा रहा है कि सारा काम ठप होने के कारण गंगा-यमुना सरीखी नदियां कितनी स्वच्छ हो गई।
परसों-तरसों जब मैं ने शक़्ल-पुस्तिका की अपनी दीवार (फेसबुक वॉल) पर यह इबारत लिखी कि ‘‘इतना छिछोरा तो प्रचंड भंडारी भी नहीं था। तू तो पत्रकारिता का कलंक है एकदम।’’ तो मुझे मालूम था कि यह तो कोई नहीं पूछेगा कि यह कलंक कौन है, क्योंकि सब जानते हैं।