Lok sabha election result

  • अंधेरे में सारे तीर

    भाजपा नेताओं ने चुनावी झटकों की वजह पार्टी नेताओं में अहंकार, अति-आत्मविश्वास, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, कार्यकर्ताओं से संवाद भंग होना और टिकट बंटवारे में गलतियों को माना है। परंतु असंतोष की जनक सरकारी नीतियों पर उनका ध्यान नहीं गया है। आम चुनाव में लगे झटके का असर अब भारतीय जनता पार्टी- और यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी साफ दिख रहा है। वहां उथल-पुथल का वैसा नज़ारा है, जिसे नरेंद्र मोदी काल में असामान्य घटनाक्रम माना जाएगा। शुरुआती प्रतिक्रिया में यह दिखाने की हुई कोशिश कि ‘सब कुछ पहले जैसा है’, अब बेअसर होती दिख रही है। मगर...

  • केंद्र-राज्य संबंधों के लिए सही जनादेश

    लोकसभा चुनाव, 2024 में मतदाताओं ने जिस तरह का जनादेश दिया है उससे कई चीजें बदलने या कई चीजों में सुधार के संकेत मिल रहे हैं, जिनमें एक शासन की संघीय ढांचा भी है। पिछले 10 साल में संघवाद के सिद्धांत को बड़ी चुनौती मिली थी। यह सही है कि भारत के संविधान की संघवाद की पद्धति अपनाई गई है लेकिन संविधान के तमाम विशेषज्ञ मानते हैं कि मजबूत केंद्र के साथ संघवाद का सिद्धांत अपनाया गया है। यानी केंद्र की प्रधानता संविधान से ही मानी गई है। ऐसे में अगर केंद्र में कोई बहुत मजबूत या ज्यादा बड़े बहुमत...

  • मोदी का कहा राजनीतिक भूचाल किधर?

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा के चुनाव प्रचार के दौरान पश्चिम बंगाल की अपनी आखिरी सभा में कहा था कि नतीजों के बाद छह महीने में देश में बहुत बड़ा राजनीतिक भूचाल आएगा। उन्होंने दावा किया था कि परिवारवादी पार्टियां बिखर जाएंगी क्योंकि उनके कार्यकर्ता भी अब थक गए हैं। वे भी देख रहे हैं कि देश किधर जा रहा है और ये पार्टियां किधर जा रही हैं। सात चरणों में हुए लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का प्रचार बंद होने से एक दिन पहले कही गई प्रधानमंत्री की इस बात के बड़े मायने निकाले गए थे। यह माना जा...

  • 303 बनाम 240 का फर्क

    लोग हैरान हैं यह बूझ कर कि नरेंद्र मोदी का राज तो वैसा ही है जैसे 2019 में 303 सीटें जीतने के बाद था। वही चेहरे वही सरकार। वैसे ही रिपीट सब जैसे पहले था। सहयोगियों में न चंद्रबाबू नायडू ने गड़बड़ की और न नीतीश कुमार ने। सहयोगी पार्टियों को न बड़े मंत्रालय दिए गए और उनका स्पीकर बनता लगता है। नरेंद्र मोदी भाषणों में वैसी ही भभकारियां मार रहे हैं, जैसे पहले मारते थे। शपथ समारोह में और अधिक भीड़ थी। टीवी चैनल, मीडिया भी कमोबेश वैसे ही है जैसे चुनाव से पहले थे।  सब सही है। मगर...

  • चुनाव नतीजे की तीन अहम बातें

    लोकसभा चुनाव का विश्लेषण दर्जनों निष्कर्षों के आधार पर हो रहा है और दर्जनों पहलुओं से इसकी व्याख्या हो रही है। इसलिए शुरू में ही यह स्पष्ट कर देना जरूरी है ये जिन तीन अहम बातों का इस लेख में जिक्र किया जा रहा है वह तीन बातें अंतिम नहीं हैं और इस तरह की कई तीन-तीन बातें हो सकती हैं, जिनके आधार पर इस बार के लोकसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण हो सकता है। सो, इन तीन बातों को उन अनेक बातों में ही माना जाए और इनके नजरिए से पूरे देश के नतीजों को समझने का प्रयास...

  • आरएसएस ने भाजपा को आईना दिखाया

    भारतीय राजनीति का एक सनातन विषय भाजपा और आरएसएस के संबंध भी है। इनके बीच सद्भाव या तनाव की खबरें लगातार चलती रहती हैं और लगातार इसका विश्लेषण भी होता रहता है। इस बार भी लोकसभा चुनाव के दौरान इस बात की चर्चा होती रही कि आरएसएस नाराज है और उसके लोग भाजपा की मदद नहीं कर रहे हैं। चुनाव के बीच भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कह दिया कि भाजपा को पहले आरएसएस की मदद की जरुरत थी लेकिन अब वह आत्मनिर्भर है। इन तमाम चर्चाओं के बीच संघ की तरफ से चुनाव के दौरान कुछ नहीं कहा गया...

  • सीट घटी हो लेकिन सहयोगी बेऔकात

    इस बार लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की 63 सीटें कम हो गईं। वह बहुमत से 32 सीट पीछे रह गई है लेकिन ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इसका कोई असर नहीं है। शुरुआत के दो चार दिनों को छोड़ दें, जब वे बैकफुट पर दिखे और सहयोगी पार्टियों के साथ संबंध सुधार की कोशिश करते दिखाई दे, तो अब उनकी पुरानी राजनीति लौट आई दिख रही है। उन्होंने सहयोगी पार्टियों की स्थिति पहले जैसी ही कर दी है, जैसी भाजपा के पूर्ण बहुमत के समय होती थी। सहयोगियों को न तो उनकी संख्या के...

  • आभार!

    हां, धन्यवाद उस जन का, उस मन का जिनके विवेक ने भारत का मान रखा। लोकतंत्र की गरिमा लौटाई। विश्व में भारत के प्रति आस्था बनवाई। देश को अर्ध लोकतांत्रिक, अर्ध अधिनायकवादी धुंध से बाहर निकाला। दमनकारी अहंकार को बांधा। मुर्दा विपक्ष में जान फूंकी। और भरोसा लौटाया कि भारत मनुष्यों का है न कि भेड़-बकरियों का एनिमल फार्म। देश गुलाम, गोबर लोगों और भक्तों का ही नहीं है और न सभी झूठ, झांसों, नफरत और रेवड़ियों के बिकाऊ हैं, बल्कि विवेकी, स्वतंत्रचेता और खुद्दार लोगों का भी है। इन्हें मालूम है अपनी ताकत। वे जयकारों के शोर के बीच...

  • जनादेश तो मोदी को ही मिला है

    यह एक तकनीकी स्थिति है कि भाजपा को पहले जितना मत प्रतिशत होने के बावजूद सीटों की संख्या में कमी आ गई। लेकिन इतना स्पष्ट है कि जनादेश श्री नरेंद्र मोदी को ही मिला है। उनके नेतृत्व में एनडीए ने चुनाव लड़ा था। उनके नाम और 10 साल के काम पर वोट मांगा गया था। चाहे बिहार में नीतीश कुमार हों या आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू सबने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांगा था और मतदाताओं ने उनकी झोली भर दी। लोकसभा चुनाव, 2024 के परिणामों का विश्लेषण कई पहलुओं से किया जा रहा है। एकाध अपवादों...

  • संघ और मोदी में संपर्क नहीं?

    विश्वास नहीं करेंगे? करना भी नहीं चाहिए। मुझे भी नहीं है। और फिर शुक्रवार को ही दिल्ली के ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में नागपुर की डेटलाइन से सूत्रों के हवाले खबर छपी है कि आरएसएस ने नरेंद्र मोदी को आशीर्वाद दिया हुआ है। पर ध्यान दें ‘सूत्र’ के हवाले खबर है। वैसे ही जैसे सूत्रों के हवाले चंद्रबाबू नायडू व नीतीश कुमार को लेकर खबरें है। बावजूद इसके मेरे सूत्रों की इस बात को नोट करके रखें कि संघ प्रमुख मोहन भागवत, उनके नंबर दो दत्तात्रेय, संघ की ओर से भाजपा को संभालने वाले अरूण कुमार अब उसी लाइन में चल रहे...

  • सरकार में घटक दलों को क्या मिलेगा?

    दस साल तक पूर्ण बहुमत की मजबूत सरकार के बाद अब गठबंधन सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। राजनाथ सिंह, अमित शाह और जेपी नड्डा सहयोगी पार्टियों के नेताओं से बात कर रहे हैं। सहयोगियों से मांगपत्र लिया जा रहा है। इस बीच कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि किसी सहयोगी को रक्षा मंत्रालय चाहिए तो किसी को रेल और किसी को गृह मंत्रालय चाहिए। लेकिन गठबंधन की राजनीति का इतिहास देखें तो आमतौर पर सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी ही शीर्ष चार मंत्रालय अपने...

  • भाजपा के अंदर भी खींचतान बढ़ेगी

    ऐसा नहीं है कि इस बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो उन्हें सिर्फ सहयोगी दलों की मांग पूरी करनी होगी या उनका दबाव झेलना होगा। भाजपा के अंदर से भी दबाव बढ़ेगा। खास कर उन राज्यों से जहां भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं हुआ है और जहां आने वाले दिनों में चुनाव होने वाले हैं। सबसे पहले तो यह देखना दिलचस्प होगा कि शीर्ष चार मंत्रालयों में क्या होता है? पुराने लोगों की वापसी होती है या नए चेहरे आते हैं? पिछली बार यानी 2019 में जब मोदी दूसरी बार ज्यादा बड़े बहुमत से जीत कर आए तो उन्होंने...

  • मोदी के बयान ने बिहार में छह सीटें हरवा दीं

    बिहार में भारतीय जनता पार्टी के नेता हैरान परेशान हैं कि आखिर पहले छह चरण में थोड़ा बहुत ऊपर नीचे होकर सब कुछ ठीक चल रहा था तो आखिरी चरण में इतना बड़ा नुकसान कैसे हो गया? गौरतलब है कि आखिरी चरण में बिहार की जिन आठ सीटों पर मतदान हुआ था उनमें से छह सीटें भाजपा और जदयू हार गए हैं। इसका मतलब है कि विपक्ष को जो 10 सीटें मिली हैं उनमें से छह सीटें आखिरी चरण की है। राष्ट्रीय जनता दल को मिली चार में से तीन सीटें आखिरी चरण वाली हैं। पाटलिपुत्र, जहानाबाद और बक्सर में...

  • अब वैसा भरोसा नहीं!

    पश्चिमी मीडिया के मुताबिक अमेरिका की सामरिक रणनीति के तकाजों को पूरा करने की मोदी की क्षमता को लेकर अब वहां भरोसा घटेगा। मतलब, बाजार हो या पश्चिमी राजधानियां- मोदी को वहां उतार पर पहुंच चुके नेता के रूप में देखा जाने लगा है। लोकसभा चुनाव के नतीजों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रुतबे पर जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, अब वह कई रूपों में जाहिर होने लगा है। मोदी की खास ताकत वित्तीय बाजारों और पश्चिमी राजधानियों में उनकी ऊंची साख रही है। यह साख इस यकीन से बनी कि मोदी संबंधित नीतियों पर प्रभावी अमल कर सकने में...

  • अबकी बार विपक्ष को मौका

    लोकतंत्र में जनता सिर्फ सरकार नहीं चुनती है। वह विपक्ष भी चुनती है। इस बार उसने बहुत मजबूत विपक्ष चुना है। इतना मजबूत, जितना आजाद भारत के इतिहास में कभी नहीं रहा है। इससे पहले और भी कमजोर सरकारें रही हैं लेकिन इतना मजबूत विपक्ष कभी नहीं रहा है। पहले कई बार विपक्ष में ज्यादा सांसद होते थे लेकिन वे एक दूसरे खिलाफ चुनाव लड़ कर आए होते थे। वे विपक्ष की बेंच पर बैठते थे लेकिन वह साझा विपक्ष नहीं कहलाता था। पहली बार ऐसा हुआ है कि सत्तारूढ़ गठबंधन 293 सांसदों के साथ एक तरफ होगा तो दूसरी...

  • चुनावी राज्यों में भाजपा की हालत खराब

    वैसे तो भारतीय जनता पार्टी को इस बार लोकसभा चुनावों में कई राज्यों में बड़ा झटका लगा है। उत्तर प्रदेश में उसे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। इसके अलावा राजस्थान में भी किसी ने नहीं सोचा था कि विपक्ष दहाई की संख्या में पहुंच जाएगा। ये राज्य तो भाजपा के लिए चिंता की बात हैं लेकिन इनसे ज्यादा चिंता तीन अन्य राज्यों की है, जहां इस साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इस साल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा के चुनाव होंगे और इन तीनों राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन पहले के मुकाबले बहुत खराब हुआ है। तीनों राज्यों...

  • कांग्रेस तीन अंकों में पहुंच जाएगी

    कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव के नतीजों में अभी 99 के फेर में फंसी दिख रही है। उसकी गाड़ी 99 सीटों पर अटक गई है। ऊपर से राहुल गांधी वायनाड और रायबरेली दो सीटों से जीते हैं। इनमें से एक सीट से उनको इस्तीफा देना होगा, जिससे पार्टी की कुल संख्या कम होकर 98 हो जाएगी। पार्टी के नेता उम्मीद कर रहे थे कि उनकी संख्या तीन अंकों में पहुंच जाएगी। नतीजों में ऐसा नहीं हुआ लेकिन जल्दी ही कांग्रेस के सांसदों की संख्या सौ का आंकड़ा पार कर जाएगी। कांग्रेस के खाते में एक सीट महाराष्ट्र से आएगी और दूसरी...

  • विकल्प पर बात हो

    चुनौती यह है कि जिन कारणों से लोग बेचैन हैं, उन्हें दूर की ठोस योजना पर विचार किया जाए? उन गंभीर मुद्दों पर विपक्षी दलों को जुमलाबाजी और बिना ठोस योजना के गारंटी घोषित करने के मोह से बचना चाहिए। आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जो झटका लगा, उस बारे में सियासी हलकों में यह आम राय है कि व्यापक बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई इसका प्रमुख कारण हैं। अपने सामने अवसरों का अभाव देख रहे लोगों- खासकर नौजवानों ने अनेक राज्यों में सत्ताधारी पार्टी को सबक सिखाने के मकसद से मतदान किया। यह अच्छी बात है कि इस...

  • सहज राजनीति के दिन लौटे?

    लोकसभा चुनाव, 2024 के नतीजों की कई पहलुओं से व्याख्या हो रही है। होनी भी चाहिए क्योंकि इस बार का नतीजा अपेक्षाकृत संश्लिष्ट है। पिछले कुछ समय से मतदाताओं के व्यवहार में एक खास प्रवृत्ति यह दिख रही थी कि वे बिल्कुल स्पष्ट जनादेश दे रहे थे। केंद्र से लेकर राज्यों तक में जनादेश में कोई संशय नहीं होता था। एक दशक बाद मतदाताओं ने त्रिशंकु जनादेश दिया है। इससे एक बार फिर देश में गठबंधन की राजनीति का दौर लौट आया है। ऐसा क्यों हुआ, विश्लेषण का एक विषय यह हो सकता है। इसी तरह अलग अलग राज्यों के...

  • शेयर मार्केट का ड्रामा

    भाजपा की सफलता- विफलता से शेयर बाजारों का रुख क्यों जुड़ा हुआ है? भाजपा को झटका लगा, तो उससे शेयर बाजार क्यों परेशान हुए? क्या यह सोच कर कि गठबंधन की मजबूरियों में अगली सरकार को सामाजिक क्षेत्र पर खर्च बढ़ाना होगा? इस हफ्ते शेयर बाजारों में नाटकीय घटनाएं हुई हैं। शनिवार को एग्जिट पोल घोषित हुए, तो शेयर बाजार के कर्ता-धर्ता बल्लियों उछल गए। तो सोमवार को बाजार खुलते ही शेयरों के भाव भी उछलते चले गए। अगले दिन जब मतगणना हुई, तो शेयर बाजार का सामना हकीकत से हुआ। भाजपा को परिकथा जैसी सफलता मिलने के बजाय पार्टी...

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