यही तो समस्या है
बड़ी कंपनियों से अपेक्षा महज सर्विस प्रोवाइडर बन जाने की नहीं है। अपेक्षा भारत में आरएंडडी का ढांचा बनाने की है। वरना, एआई के मामले में अमेरिका या चीन पर निर्भर बने रहना भारत की नियति बनी रहेगी। रिलायंस इंडस्ट्री के बारे में कभी कहा जाता था कि उसके प्रवर्तक अपने मातहतों को “बड़ा सोचने” की सलाह देते हैं। कई दशकों के बाद अब सामने यह है कि उस “बड़ी सोच” का नतीजा कंपनी के मुनाफे में लगातार बढ़ोतरी और अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों पर मोनोपॉली कायम करने के रूप में जरूर आया, मगर उसका भारत में अनुसंधान- विकास (आरएंडडी)...