nirmila sitaraman
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि इस बार उनका बजट सौ साल में एक बार आने वाले बजट की तरह होगा यानी ऐतिहासिक, अभूतपूर्व होगा।
आज यह माना जा रहा है कि इस साल का बजट चमत्कारी होगा, क्योंकि देश जिन मुसीबतों में से इस साल गुजरा हैं, वे असाधारण हैं।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में वित्त वर्ष 2020-21 का आर्थिक सर्वे रखा तो उसमें सबसे ज्यादा इस बात को हाईलाइट किया गया कि अगले वित्त वर्ष में विकास दर 11 फीसदी रह सकती है।
एक वक्त केंद्र सरकार का बजट कई दिनों पहले से टीवी चैनलों पर बहस, सुर्खियों, अनुमानों, अर्थशास्त्रियों के सुझावों-विश्लेषणों का पूर्व माहौल लिए होता था।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने तीसरे बजट की तैयारी कर रही हैं। इस बार का उनका बजट कोरोना वायरस की महामारी की छाया में बन रहा है। उन्होंने बनने से पहले ही अपने इस बजट को ऐतिहासिक बताया है।
कोरोना वायरस की महामारी का असर सिर्फ संसद के सत्र पर ही नहीं है, बल्कि बजट के दस्तावेजों पर भी है। वायरस की वजह से वित्त वर्ष 2020-21 के बजट दस्तावेज नहीं छापे जाएंगे
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और दूसरा बजट तैयार कर रही हैं। उनके पहले बजट ही हाईलाइट यह थी कि चमड़े के ब्रीफकेस की बजाय वे झोले में बजट लेकर संसद पहुंची थीं।
केंद्र सरकार के बजट को लेकर समाज के हर तबके की अपनी उम्मीद होती है। हालांकि पिछले कुछ समय से सरकार के ज्यादातर आर्थिक फैसले बजट से बाहर होते हैं इसलिए अब बजट को लेकर ज्यादा दिलचस्पी नहीं रहती है।
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केंद्र सरकार की मानें तो उसने पिछले हफ्ते अर्थव्यवस्था के लिए तीसरा प्रोत्साहन पैकेज घोषित किया। बताया गया कि यह 2,65,080 करोड़ रुपयों का पैकेज है।
बहस हो रही है कि देश की अर्थव्यवस्था कितनी गिरेगी? पहली तिमाही में 24 फीसदी गिरावट रही। दूसरी तिमाही में भी 14 फीसदी तक गिरावट का अनुमान है। भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि चालू वित्त वर्ष यानी 2020-21 में देश की अर्थव्यवस्था में साढ़े नौ फीसदी की गिरावट रहेगी।
निर्मला सीतारमण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से घोषित 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज की जो बारीकियां बताईं, जानकार लोगों ने कहा कि यह तो बजट हो गया। यानी बजट के बाद मिनी बजट पेश कर दिया गया।
क्या कोरोना जैसे असाधारण संकट के समय सरकारी मशीनरी उसी अनुपात में काम नहीं कर रही है, जितना बड़ा ये संकट है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित कहा है कि हमें जान और जहान दोनों की चिंता करनी होगी। मगर सरकार ने “जहान” की जो चिंता की, वह उसकी मशीनरी में प्रतिबिंबित नहीं हुआ है। मसलन, अपने पहले राहत पैकेज में वित्त मंत्री ने किसानों को पीएम-किसान के तहत अगली किश्त का तुरंत भुगतान करने का एलान किया। कोरोना वायरस के कारण उपजे संकट से राहत देने के लिए पिछले महीने 26 मार्च को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना पैकेज की घोषणा की थी। इसके तहत साल 2020-21 के पीएम-किसान की पहली किस्त ‘तत्काल प्रभाव’ से 8.69 करोड़ किसानों को दी जानी थी। मगर इस पैकेज की घोषणा के दो हफ्ते बीत जाने के बाद भी डेढ़ करोड़ से ज्यादा किसानों को पीएम किसान की पहली किस्त के 2,000 रुपए नहीं मिले थे। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की तरफ से एक आरटीआई याचिका पर एक वेबसाइट को मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक 11 अप्रैल 2020 तक में 7.1 करोड़ किसानों को ही पहली किस्त का लाभ मिला था। इसका मतलब हुआ कि 1.59 करोड़ किसानों को… Continue reading राहत में कोताही क्यों?
जिस काम के लिए मैं लगभग एक हफ्ते से लगातार जोर दे रहा हूं, वह काम आज कमोबेश भारत सरकार ने कर दिया। बधाई। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने देश के गरीबों, ग्रामीणों, वंचितों, विकलांगों, दिहाड़ी मजदूरों, छोटे व्यापारियों या यों कहें कि देश के लगभग 80 करोड़ लोगों के लिए तरह-तरह की रहत की घोषणा कर दी है। सरकार अब अगले तीन महिनों में आम-जनता को सहूलियतें देने के लिए एक लाख 70 हजार करोड़ रु. खर्च करेगी। इसे मैं ‘देर आयद्, दुरुस्त आयद’ कहता हूं। यह देर सिर्फ राहतों की घोषणा में ही नहीं हुई है। तालाबंदी की तैयारी में भी हुई है। प्रधानमंत्री ने तालाबंदी पर भाषण दिया और उसके तीन-चार घंटों में ही उसे लागू कर दिया। करोड़ों मजदूर, किसान और व्यापारी और यात्री भी, जहां थे, वही फंस गए। डर के मारे लोग घरों से निकले ही नहीं। हमें लगा कि लोगों में कितना अनुशासन है, कितनी आज्ञाकारिता है लेकिन अब कुछ टीवी चैनल जो सच्चाइयां दिखा रहे हैं, उनसे चिंता पैदा हो रही है। हजारों मजदूर अपने गांव जाने के लिए बस-अड्डों पर भीड़ लगा रहे हैं, कुछ लोग बाल-बच्चों समेत पैदल ही निकल पड़े हैं, सैकड़ों लोग कई शहरों में साग-सब्जी और अनाज की… Continue reading कोरोना से राहतः पुण्य कमाएं
सरकार नकदी के संकट में है। कई बातों से इसका पता पहले से चल रहा था। पर अब जिस अंदाज में सरकार ने पेट्रोल और डीजल के ऊपर तीन-तीन रुपए का उत्पाद शुल्क और उपकर लगाया है उससे इस बात की पुष्टि हो गई है कि सरकार के पास नकदी की कमी है और वह किसी और उपाय से पैसे नहीं जुटा पा रही है। यह भी साफ हो गया है कि सरकार अपने खर्च में नहीं कर पा रही है तभी उसे अतिरिक्त नकदी का इंतजाम करना पड़ रहा है और फिर भी वित्तीय घाटा तय सीमा से ऊपर चला जा रहा है। तभी सवाल है कि सरकार के पास जो पैसे आ रहे हैं वह कहां जा रहा है? इस सवाल के जवाब में बहुत सरल तरीके से यह कहा जा सकता है कि सरकार की राजस्व वसूली कम हुई है। तब एक दूसरा सवाल उठेगा कि राजस्व वसूली क्यों कम हुई है? जब सरकार ने नोटबंदी के जरिए समूचा काला धन सिस्टम में ला दिया और साफ-सुथरी अर्थव्यवस्था बन गई और दूसरी ओर वस्तु व सेवा कर, जीएसटी के जरिए परोक्ष कर वसूली की व्यवस्था को भी पुख्ता तरीके से लागू कर दिया गया तब भी राजस्व… Continue reading सरकार का पैसा जा कहां रहा?