संकल्प के धनी और बात के पक्के
मैं उसे “मालगुज़ार” कहता था। और वह था भी वैसा — दिल का राजा, बांटने वाला, लुटा देने वाला। वह मालगुज़ार जो अपनी दौलत नहीं, अपने स्वभाव से बड़ा था। एक ऐसा मित्र, जो खुद के लिए कुछ नहीं रखता था, और दोस्तों के लिए सब कुछ देने को तत्पर रहता था। कल रात जब खबर आई कि जगदीप सिंह बैस नहीं रहे, तो कलेजा जैसे सुन्न हो गया। तिरपन वर्ष की उम्र, कच्चा परिवार, और अभी कुछ दिन पहले ही शादी की सालगिरह मनाई थी— भला यह कोई जाने की उम्र थी? वे नौ महीनों से कैंसर से जूझ...