श्रद्धापूर्वक माता–पिता की सेवा ही सच्चा श्राद्ध
महर्षि दयानंद ने कहा था—मृतक श्राद्ध अवैदिक है। लेकिन जीवित माता–पिता की सेवा ही सबसे बड़ा यज्ञ है। वास्तव में यही वह सत्य है जो हमें याद रखना चाहिए।श्राद्ध का मर्म यही है कि श्रद्धा और सेवा से अपने माता–पिता और गुरुजनों का मन प्रसन्न करें। यही पुत्र का कर्तव्य है, यही धर्म है, और यही वास्तविक पितृयज्ञ है। भारतीय संस्कृति में पितरों का स्मरण केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि जीवन–दर्शन का हिस्सा है। पीढ़ियों से हम यह मानते आए हैं कि हमारे अस्तित्व का आधार माता–पिता और पूर्वज हैं। वे ही हमारी देह, संस्कार और परंपराओं के वाहक हैं।...