पिंजराबंद औरते, तालिबानी संहिता
औरत होना आसान नहीं है। औरतों को मर्दों के बराबर आजादी नहीं मिलती। समाज उन्हें गलत ठहराने के लिए हमेशा तैयार रहता है। हम औरतों को एक साथ बहुत सी भूमिकाएं निभानी पड़ती हैं। लेकिन हमारी सराहना करने में कंजूसी बरती जाती है। हम आवाज़ उठातीं हैं, लेकिन अक्सर उसे दबा दिया जाता है। कहने को हम यह तय कर सकती हैं कि हम क्या करें। मगर असल में हमें सीमित विकल्पों में से किसी एक को चुनना पड़ता है। हम कहीं भी जाने के लिए आजाद हैं, लेकिन अपनी मर्ज़ी से लोगों से घुलमिल नहीं सकतीं। एक ऐसी दुनिया...