डॉ. वैदिकः हिंदी पत्रकारिता और खाली!
वैदिकजी कभी थके नहीं। कभी हारे नहीं। कभी विश्राम नहीं किया। उन्हें जीवन से कभी कोई गिला नहीं रहा। शायद ही किसी से वे चिढ़े या उनका कोई दुश्मन हो। … लोगों की उनसे रागात्मकता इसलिए थी कि भला उन जैसा निस्पृह, निर्लोभ दूसरा कौन है शहर में! सोचें, ‘नया इंडिया’ का पहले पेज का बॉटम आज से बिना डॉ. वैदिक की उपस्थिति के होगा। लगभग 11 वर्षों से डॉ. वैदिक ‘नया इंडिया’ के पहले पेज के लिए लिखते हुए थे। गजब संयोग जो पांच दिन पहले होली के दिन प्रेस एनक्लेव में बेटी अपर्णा के यहां लंच करके डॉ....