ठूंठ रहनुमाओं के मुल्क़ में
विवाह अब यज्ञ-वेदी के चारों तरफ़ घूम कर नहीं, प्री-वेडिंग, वेडिंग और पोस्ट-वेडिंग के कैमरा-केंद्रित चोंचलों के मंच पर संपन्न होते हैं। दूसरा विवाह भिन्न चाल-चरित्र-चेहरे वाले राजनीतिक दल के एक धरती-पुत्र के पुत्र का था। इस के उत्सव भी तक़रीबन दो महीने चलते रहे।... विवाह अब यज्ञ-वेदी के चारों तरफ़ घूम कर नहीं, प्री-वेडिंग, वेडिंग और पोस्ट-वेडिंग के कैमरा-केंद्रित चोंचलों के मंच पर संपन्न होते हैं।... अगर गांधी-पटेल-नेहरू सब छोड-छाड़ डगर-डगर घूमते रहने के बजाय रात-दिन अपने लिए रंग-बिरंगे परिधान जुटाने में लगे रहते तो क्या भारत स्वतंत्र हो जाता? इसलिए यह सोचने की बात है कि आज हम...