Thursday

24-04-2025 Vol 19

शब्द फिरे चंहुधार

उत्सवधर्मिता संकट में तो है!

उत्सवधर्मिता संकट में तो है!

धर्म, धार्मिकता का शोर कितना ही हो, लाईटें और दिखावा कितना ही हो परिवार में उत्सवधर्मिता का मजा वैसा नहीं है, जैसा पहले था।
दिवालीः जगमग अंधेरा!

दिवालीः जगमग अंधेरा!

छोटी-छोटी बातें हैं लेकिन इन्हीं से तो दिवाली बड़ा त्योहार था। दिवाली तब साल का एक इंतजार था।
भीड़ के लिए क्या जिंदगी, ‘मृत्यु’ और ‘मोक्ष’!

भीड़ के लिए क्या जिंदगी, ‘मृत्यु’ और ‘मोक्ष’!

कोई कितनी ही कोशिश करे, भारत की भीड़ को दुनिया से कनेक्ट करे, क्योटो और काशी में करार कराए, काशी को कितना ही आधुनिक बनाए, सब मिथ्या।