दीर्घकाल में अमेरिका की वित्तीय स्थिति और कमजोर होगी। यह बात फेडरल रिजर्व के प्रमुख ने स्वीकार की है। स्पष्टतः अमेरिकी संकट का पूरी दूनिया की वित्तीय व्यवस्था की मुसीबत डाल देगा। इस जोखिम से बचने की तैयारी अभी से की जानी चाहिए।
अमेरिका के केंद्रीय बैंक- फेडरल रिजर्व के प्रमुख जेरोम पॉवेल ने एक ऐसी बात कही है, जिससे विश्व अर्थव्यवस्था के लिए उभर रहे खतरे का संकेत मिलता है। एक इंटरव्यू में पॉवेल ने कहा- “मैं ये बात कहूंगा कि अमेरिका जिस वित्तीय राह पर है, वह दीर्घकालिक नजरिए से टिकाऊ नहीं है। इसका सीधा अर्थ यह है कि अमेरिका सरकार पर कर्ज अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर की तुलना में अधिक से तेजी से बढ़ रहा है।” यह उस बात की स्वीकारोक्ति है, जिसकी चर्चा अनेक विशेषज्ञ काफी समय से कर रहे हैं। अमेरिका सरकार पर कुल कर्ज 34 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा हो चुका है, जबकि अमेरिका की जीडीपी 24-25 ट्रिलियन डॉलर ही है। इस कर्ज में से 8.9 ट्रिलियन डॉलर अगले वर्ष चुकाने होंगे। इस बीच 2024 में अमेरिका राजकोषीय घाटा 1.4 ट्रिलियन डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया है। मतलब यह कि अमेरिका सरकार को खर्च चलाने और अपनी ऋण देनदारियां निभाने के लिए एक साल में दस ट्रिलियन डॉलर का और कर्ज लेना होगा। मतलब साल भर बाद कर्ज का बोझ और बढ़ा हुआ होगा।
इस बीच देश में ब्याज दरें घटाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया है कि इस साल चार कटौतियां की जा सकती हैँ। उस हाल में अमेरिकी बॉन्ड्स पर कम ब्याज मिलेगा, जिससे उनमें निवेशकों की दिलचस्पी घट सकती है। इस संभावना के मद्देनजर अभी ही विश्व बाजार में सोने की कीमत लगभग 2200 डॉलर प्रति औंस के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। यानी लोग स्वर्ण में पैसा लगाना अधिक लाभदायक मान रहे हैं। आशंका है कि इन कारणों से अमेरिकी सरकार को अपने बॉन्ड्स पर बाजार दर से अधिक ब्याज देना पड़ सकता है। इससे दीर्घकाल में उसकी वित्तीय स्थिति और कमजोर होगी। यही बात अब पॉवेल ने स्वीकार की है। चिंता की बात यह है कि अमेरिकी वित्तीय बाजार से विश्व अर्थव्यवस्था गहराई से जुड़ी हुई है। उसका संकट का नतीजा पूरी दूनिया की वित्तीय व्यवस्था की मुसीबत के रूप में सामने आएगा। इसलिए भारत सहित तमाम देशों को उससे बचने की तैयारी अभी से शुरू कर देनी चाहिए।