nayaindia Mizoram election result ऊबे मतदाताओं का जनादेश

ऊबे मतदाताओं का जनादेश

लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाता अक्सर हर उस नई शक्ति को मौका देने का जोखिम उठाते हैं, जिसमें उन्हें संभावना नजर आती है। दूसरी तरफ अगर राजनीतिक दल और नेता लगातार अपना पुनर्आविष्कार ना करते रहें, तो वे लोगों में एक ऊब पैदा कर देते हैं।

छत्तीस वर्ष पहले पूर्ण राज्य बनने के बाद से मिजोरम ने अब तक दो पार्टियों- कांग्रेस और मिजो नेशनल फ्रंट- का राज ही देखा था। इस पूरे दौर में दो नेता- ललथनहवला और जोरामथंगा- ही वहां की सियासत पर छाये रहे। इस गतिरुद्धता से ऊबे मिजोरम के मतदाताओं ने अब इन दोनों ही पार्टियों को विश्राम दे दिया है। ताजा विधानसभा चुनाव में उन्होंने सिर्फ चार साल पहले बनी पार्टी- जोराम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) को दो तिहाई बहुमत से सत्ता सौंप दी है। इस पार्टी के नौकरशाह रह चुके नेता ललडुहोमा अब मुख्यमंत्री बनेंगे। पूर्व आईपीएस अधिकारी ललडुहोमा एक राजनीतिक प्रशासक के तौर पर कैसी भूमिका निभाएंगे, यह तो बाद में जाहिर होगा। लेकिन इस जनादेश ने दो बातें साबित की हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाता अक्सर हर उस नई शक्ति को मौका देने का जोखिम उठाते हैं, जिसमें उन्हें संभावना नजर आती है। दूसरी बात यह कि अगर राजनीतिक दल और नेता लगातार अपना पुनर्आविष्कार ना करते रहें, तो वे लोगों में एक ऊब पैदा कर देते हैं। इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ती है।

कांग्रेस को इस पहलू की कीमत लगभग सारे देश में चुकानी पड़ रही है। दरअसल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करारी हार के एक दिन बाद आए मिजोरम के चुनाव नतीजों ने उसके जख्म पर और नमक डाला है। जो पार्टी गुजरे 36 वर्षों में लगातार राज्य में एक प्रमुख शक्ति रही, वह इस बार वहां सिर्फ एक सीट जीत पाई है। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने अपने हिंदुत्व के तमाम एजेंडे के बावजूद इस ईसाई बहुल राज्य में दो सीटें जीत ली हैँ। इस परिणाम ने भी यही रेखांकित किया है कि कांग्रेस अपने को नया रूप देने में विफल है, इसलिए मतदाताओं में नए सिरे से वह कोई उम्मीद नहीं जगा पा रही है। इस कारण वह धीरे-धीरे सियासत में अपनी प्रासंगिकता खो रही है। यह कड़वा तथ्य उसके सामने है कि जिस किसी राज्य में एक बार वह प्रथम दो स्थान से नीचे चली जाती है, वहां वह फिर खड़ी नहीं हो पाती। जाहिर है, अब मिजोरम में भी यह खतरा उस पर मंडरा रहा है।

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