विधानसभा चुनावों के दौर में ऐसा लगा कि इंडिया एलायंस को एक तरह से अवकाश पर भेज दिया गया है। अब जबकि उसे छुट्टी से वापस बुलाया जा रहा है, तो वह चोटिल अवस्था में है। इसका असर आज गठबंधन की बैठक में दिखेगा।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन को ठेंगे पर रखा। तो अब बारी उसकी कीमत चुकाने की है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद हवा में उछल रही कांग्रेस की गणना संभवतः यह थी कि पांच विधानसभा के चुनाव में भी बेहतर प्रदर्शन करने के बाद उसकी हैसियत इतनी बढ़ जाएगी कि वह इंडिया गठबंधन के अंदर अपनी शर्तें थोप सकेगी। चूंकि उसका प्रदर्शन बदतर रहा, तो अब स्वाभाविक है कि गठबंधन में शामिल दूसरे दल उस पर अपनी शर्तें थोपने की तैयारी में हैं। तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने खुल कर कांग्रेस के “अहंकार” की चर्चा की है। दूसरी तरफ जनता दल (यू) की तरफ से मांग उठा दी गई है कि अब 2024 के चुनाव में नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का चेहरा घोषित किया जाए। इस सारे घटनाक्रम का सार यह है कि विपक्षी दल फिलहाल दिमाग भाजपा के खिलाफ रणनीति बनाने से ज्यादा अपने गठबंधन के भीतर अपनी हैसियत बढ़ाने और जताने में लगाए हुए हैँ।
यह उनमें उद्देश्य की एकता के अभाव का एक सूचक है। अगर ऐसी एकता की भावना होती, तो निर्विवाद रूप से कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इंडिया में शामिल दलों को सीट बंटवारे में एडजस्ट करती। ऐसा होता, तो हार की अवस्था में भी यह गठबंधन एक बेहतर जमीन पर नजर आता। तब यह संदेश बना रहता कि गठबंधन में शामिल दल भाजपा को एक विचारधारात्मक चुनौती मानते हैं- इसलिए उसे परास्त करने के लिए अपने हितों को कुर्बान करने तक को तैयार हैं। मगर यह मौका गंवाया जा चुका है। बल्कि विधानसभा चुनावों के दौर में ऐसा लगा कि इंडिया एलायंस को एक तरह से अवकाश पर भेज दिया गया है। अब जबकि उसे छुट्टी से वापस बुलाया जा रहा है, तो वह चोटिल अवस्था में है। आज (बुधवार को) जब महीनों के अंतराल के बाद गठबंधन की बैठक होगी, तो उस पर इस चोट का असर साफ दिखेगा। 2024 के चुनाव के सिलसिले में गठबंधन की संभावनाएं पहले भी बहुत उज्ज्वल नहीं थीं, लेकिन अब तो ये धूमिल नजर आ रही हैँ।