यह गंभीर चिंता का विषय है कि जिस समय भारत विश्व बाजार में अपनी हैसियत बढ़ाने की ऊंची महत्त्वाकांक्षाएं जता रहा है, उस समय निर्यात के लक्ष्य देशों की संवेदनाओं और मानदंडों की हमारी कंपनियों ने अनदेखी कर रखी है। इसके परिणाम सामने आ रहे हैं।
एमडीएच और एवरेस्ट ब्रांड के मसालों पर कई देशों में लगे प्रतिबंध ने वैश्विक मानकों पर भारतीय उत्पादों के खरा ना उतरने के मुद्दे को चर्चा में ला दिया है। प्रतिबंध की शुरुआत सिंगापुर और हांगकांग से हुई और फिर कई देशों में ये उत्पाद कठघरे में खड़े कर दिए गए। ध्यानार्थ है कि हाल के वर्षों में भारतीय दवा उद्योग को भी विभिन्न देशों में ऐसी चुनौती से गुजरना पड़ा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक यूरोपियन यूनियन में 2019 से 2024 तक कुल 527 भारतीय उत्पादों को लेकर चेतावनी जारी की गई है। आरोप है कि इन खाद्य पदार्थों में शीशा, पारा, कैडमियम, कीटनाशकों आदि की मात्रा स्वीकृत स्तर से अधिक पाई गई। जिन पदार्थों में ऐसी शिकायत आई, उनमें आयुर्वेदिक दवाएं, हल्दी से बने उत्पाद, मछली एवं अन्य समुद्री खाद्य आदि शामिल हैं। विशेषज्ञों ने कहा है कि इन पदार्थों के अधिक मात्रा में सेवन से किडनी, दिमाग, नर्वस सिस्टम आदि के क्षतिग्रस्त होने का अंदेशा रहता है।
जो देश मानव स्वास्थ्य को लेकर अधिक संवेदनशील हैं, लाजिमी है कि वहां जांच-पड़ताल का एक सिस्टम सक्रिय रहता है। वहां ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाए जाते हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है कि जिस समय भारत विश्व बाजार में अपनी हैसियत बढ़ाने की ऊंची महत्त्वाकांक्षाएं जता रहा है, उस समय निर्यात के लक्ष्य देशों की संवेदनाओं और मानदंडों की हमारी कंपनियों ने अनदेखी कर रखी है। ऐसा लगता है कि बेलगाम उदारीकरण के दौर में निरीक्षण एवं परीक्षण की सरकारी एजेंसियां भी निष्प्रभावी होती जा रही हैं। वरना, भारतीय उत्पादों को लेकर हाल के वर्षों में अमेरिका से लेकर यूरोप और अफ्रीका से एशिया तक जितने सवाल उठे हैं, उतना पहले कभी नहीं होता था। ऐसा लगता है कि कंपनियों को मुनाफा बढ़ाने की छूट देने के दौर में उनसे वैश्विक मानदंडों का पालन कराने की जरूरत को नजरअंदाज किया जा रहा है। मगर अब इसके नतीजे सामने आने लगे हैं। एक के बाद एक भारतीय उत्पाद अलग-अलग देशों में कठघरे में खड़े किए जा रहे हैं। यह क्रम आगे बढ़ा, तो भारत की विकास गाथा खतरे में पड़ जाएगी।