nayaindia Mamta Banerjee ममता का मोमेंट कैसे बनेगा?

ममता का मोमेंट कैसे बनेगा?

तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अगले साल यानी 2024 के लोकसभा चुनाव के समय 69 साल की होंगी। सो, तमाम पारंपरिक पैमानों पर वह उनके नेतृत्व का आखिरी लोकसभा चुनाव होगा। उसके बाद 2029 में वे 79 साल की होकर राजनीति में भले कुछ सक्रिय रहें लेकिन उनका प्राइम टाइम अगले साल समाप्त हो जाएगा। इसलिए वे इंडिया मोमेंट्सको अपना भी मोमेंट बनाने की जी तोड़ कोशिश कर रही हैं। वे लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी हैं और उससे पहले केंद्र में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल चुकी हैं। इसलिए उनकी मंजिल प्रधानमंत्री की कुर्सी है। सवाल है कि वे वहां तक कैसे पहुंचेंगी? उनको समझ में आता लग रहा है कि अकेले यह रास्ता तय नहीं हो सकता है और न कांग्रेस का विरोध करके यह मंजिल हासिल की जा सकती है। 

अभी तक वे कांग्रेस का विरोध करके, उसको कमजोर करके, अपनी ताकत बढ़ाना चाहती थीं और भाजपा को चुनौती देने वाली पार्टी बनने के प्रयास में थीं। लेकिन गोवा से लेकर त्रिपुरा और मेघालय तक हर जगह उनको झटका लगा है। उलटे कांग्रेस विरोध की उनकी राजनीति ने भाजपा को मजबूत किया है। इसलिए शायद अब इस रणनीति की सीमाएं उनको समझ में आ रही हो। तभी जैसे ही राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त की गई उन्होंने रणनीति बदली और इसी बहाने कांग्रेस के प्रति सद्भाव दिखाया। ममता ने दिल्ली आकर शक्ति प्रदर्शन करने का पहले से तय कार्यक्रम टाला। कोलकाता में दो दिन का प्रदर्शन किया। उन्होंने भाजपा के भ्रष्टाचार विरोध के दावे की पोल खोली और कहा कि देश के सारे भ्रष्ट नेता भाजपा की वाशिंग मशीन से धुल कर सफेद हो रहे हैं। इसी सभा में उनके भतीजे और पार्टी के उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी ने भी सभी विपक्षी पार्टियों के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की अपील की। 

ममता बनर्जी ने कांग्रेस के प्रति सद्भाव और विपक्ष को एकजुट करने का जो मैसेज दिया है अब उसे जमीन पर उतारने का समय है। उन्होंने पिछले दिनों कर्नाटक के जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी से मुलाकात की थी और कहा था कि वे प्रचार के लिए आएंगी। पर शायद अब ऐसा न हो।  

हिसाब से नए तेंवर में उन्हे कर्नाटक से अब दूर रहना चाहिए और इस बारे में बात करके केसीआर को भी प्रचार से रोकना चाहिए। साथ ही यदि संभव हो तो जेडीएस से बात करके कांग्रेस के साथ रणनीतिक समझदारी बनवानी चाहिए। चुनाव पूर्व तालमेल हो सकता है कि कांग्रेस और जेडीएस दोनों के लिए नुकसानदेह हो लेकिन सीटों की एडजस्टमेंट से फायदा हो सकता है। ममता अगर यह पहल करती हैं तो उनकी बातों पर भरोसा बनेगा। 

इसके बाद अगर वे इंडिया मोमेंट्सअपना बनाना चाहती हैं तो उनको पश्चिम बंगाल पर फोकस करना चाहिए। उनके चुनाव रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर इन दिनों बिहार में यात्रा कर रहे हैं। वे हर जगह सभा में कहते हैं कि 26 लोकसभा सीट वाले गुजरात का नेता प्रधानमंत्री बन सकता है तो 40 सीट वाले बिहार का क्यों नहीं बन सकता है। उन्होंने अभी एक हालिया चुनावी सभा में कहा कि अगर बिहार के लोग साथ खड़े हो जाएं तो वे यह सुनिश्चित कर देंगे कि बिहार के बगैर केंद्र की सरकार नहीं बनेगी। यह काम ममता बनर्जी अपने राज्य में कर सकती हैं। उनके यहां तो बिहार से भी दो ज्यादा यानी 42 लोकसभा सीटें हैं। वे अगर बंगाल के लोगों को ललकारती हैं और ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने का संकल्प बनाती हैं तो यह सुनिश्चित हो जाएगा कि उनके बगैर दिल्ली में सरकार नहीं बनेगी। वे 2014 में नरेंद्र मोदी की पहली लहर में 42 में से 34 सीट जीतने का कारनामा कर चुकी हैं। अगर वे इस कारनामे को दोहराती हैं तो भाजपा को बहुत बड़ा झटका लगेगा, जिसके पास अभी राज्य में 18 लोकसभा सीटें हैं। इसके लिए वे कांग्रेस और लेफ्ट के साथ रणनीति बना सकती हैं। चुनाव पूर्व गठबंधन की बजाय सीटों के रणनीतिक तालमेल का रास्ता चुन सकती हैं। निश्चित रूप से उनके दिमाग में ऐसी कोई रणनीति है तभी उन्होंने बंगाल की 40 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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