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रघुराम राजन ने क्या गलत कहा?

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारत सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा की दुखती रग पर हाथ रखा है। पिछले दिनों तीसरी तिमाही यानी सितंबर-दिसंबर 2022 के सकल घरेलू उत्पादन के विकास दर का आंकड़ा आया था। उसे जान कर उन्होने कहा कि भारत खतरनाक ढंग से हिंदू विकास दर के नजदीक पहुंच गया है। असल में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी की विकास दर 4.4 फीसदी रही। दूसरी तिमाही में विकास दर 6.3थी। जबकपहली तिमाही यानी अप्रैल-जून 2022 में विकास दर 13.2 फीसदी थी। रघुराम अर्थशास्त्री हैं तो उनको इन तीनों तिमाहियों की विकास दर का फर्क पता है। पहली तिमाही में 13 फीसदी से ऊपर विकास दर इसलिए थी क्योंकि उसका बेस बहुत छोटा है। कोरोना वायरस का संक्रमण शुरू होने के बाद अप्रैल-जून 2020 में भारत में विकास दर माइनस 24 फीसदी हो गया था। उस बेस पर जरा सी भी बढ़ोतरी दो अंकों में पहुंच जाती है। लेकिन उसके बाद जैसे जैसे सुधार हुआ वैसे वैसे बेस बढ़ता गया और इसलिए तीसरी और चौथी तिमाही में विकास दर कम है।

कह सकते हैं कि तीसरी तिमाही का आंकड़ा 4.4 फीसदी की विकास दर ही वास्तविक है। असली विकास दर इसी के आसपास है। इसी रफ्तार से भारत का सकल घरेलू उत्पादन बढ़ रहा है। ऐसा नहीं है कि इस तरह की निम्न विकास दर कोरोना के बाद का मामला है। कोरोना के पहले ही विकास दर में गिरावट शुरू हो गई थी। नवंबर 2016 की नोटबंदी के बाद से विकास दर में गिरावट रही है। यह जानना और दिलचस्प है कि वित्त वर्ष 2014-15 में देश की विकास दर सात फीसदी से ऊपर थी और अगले दो साल तक विकास दर इसी के आसपास रही थी। मगर नोटबंदी के बाद गिरावट चालू हुई। उसके बाद जीडीपी लगातार गिरती गई।

कोरोना का संक्रमण शुरू होने के बाद पहली तिमाही में विकास दर माइनस 24 फीसदीथी। उससे ठीक पहले वित्त वर्ष 2019-20 की आखिरी तिमाही याकि जनवरी-मार्च 2020 में विकास दर गिर कर 3.1 फीसदी पहुंच गई थी। तब भारत में कोरोना का असर नहीं शुरू हुआ था। वित्त वर्ष 2019-20 में विकास दर 4.2 फीसदी रही थी। उससे पहले यानी वित्त वर्ष 2018-19 में विकास दर 6.1 फीसदी थी। इससे पहले के वित्त वर्ष में विकास दर साढ़े छह फीसदी के आसपास थी। इस तरह से साफ देख सकते हैं कि नोटबंदी के बाद से विकास दर में गिरावट शुरू हुई और उसकी निरंतरता कोरोना आने तक बनी रही। कोरोना की वजह से विकास दर माइनस में चली गई। उसके बाद की विकास दर का कोई खास मतलब नहीं है क्योंकि पहले नोटबंदी और फिर कोरोना की वजह से अर्थव्यवस्था का आकार बहुत घट चुका था। इसलिए जरा सी भी बढ़ोतरी प्रतिशत में बहुत ज्यादा दिखाई देगी। हकीकत यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था का आकार अब जाकर तीन साल पहले की स्थिति में वापिस पहुंचा है। सो, भले इस पूरे साल की विकास दर सात फीसदी के करीब रहे लेकिन 2019-20 की अर्थव्यवस्था के आकार के लिहाज से वास्तविक विकास दर चार फीसदी के करीब ही है।

अब यदि से हिंदू विकास दर की धारणा में समझेंगे तो साफ लगेगा कि रघुराम राजन सही कह रहे है। ध्यान रहे हिंदू विकास दर का हिंदू धर्म से कोई लेना देना नहीं है। इसलिए जो लोग इस शब्दावली से आहत हो रहे हैं उनको पहले इसका इतिहास जानना चाहिए। भारत के विकास को हिंदू विकास दर का नाम अर्थशास्त्री राज कृष्ण ने दिया था। आजादी के बाद से तीन दशक तक यानी 1980 तक भारत की औसत विकास दर साढ़े तीन से चार फीसदी की थी। भारत की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। देश की बहुत बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर थी। विकास दर बढ़ने की संभावना कहीं नहीं दिख रही थी। भारत की अर्थव्यवस्था छोटी घरेलू बचत के आधार पर चल रही थी। एक खास बात यह भी थी कि भारत की जनसंख्या वृद्धि दर जो थी वह प्रति व्यक्ति आय में होने वाली बढ़ोतरी से ज्यादा थी। उसी समय 1978 में अर्थशास्त्री राज कृष्ण ने हिंदू विकास दर का जुमला बोला। और वह फिर प्रचलन में आ गया। इस लिहाज से साढ़े तीन से चार फीसदी की विकास दर को हिंदू विकास दर माना गया। आज फिर देश की विकास दर उतनी ही है। कोरोना के पहले की तिमाही यानी जनवरी-मार्च 2020 में विकास दर 3.1 फीसदी थी और अक्टूबर-दिसंबर 2022 में विकास दर 4.4 फीसदी।

इसीसत्यके हवाले रघुराम राजन ने कहा है कि भारत खतरनाक रूप से हिंदू विकास दर के नजदीक पहुंचा है तो भला इसमें क्या गलत है? उन्होंने इसके कारण भी बताए हैं। रघुराम राजन ने मुख्य रूप से तीन कारण बताए हैं। पहला कारण यह कि निजी सेक्टर में निवेश बहुत कम हो गया है। यह तथ्यात्मक रूप से गलत नहीं है। निजी सेक्टर में निवेश सचमुच बहुत कम है। तभी सरकार को पूंजीगत खर्च बढ़ाना पड़ा है। इस साल बजट में 10 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्च का ऐलान है। सरकार इसी के जरिए अर्थव्यवस्था को चला रही है। रघुराम राजन ने हिंदू विकास दर लौटने का दूसरा कारण बढ़ती ब्याज दर को बताया है। ध्यान रहे आजादी के बाद पांच दशक से ज्यादा समय तक ब्याज दर बहुत ऊंची थी। अब फिर महंगाई कम करने के नाम पर ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। रघुराम ने तीसरा कारण वैश्विक मंदी को बताया है। उन्होंने कहा है कि दुनिया भर में विकास दर कम हो रही है और भारत उससे अछूता नहीं है। ये तीनों कारण सही-तर्कसंगत हैं। भारत की अर्थव्यवस्था की वास्तविक तस्वीर बताने वाले हैं। रघुराम की आलोचना करने वाले ज्यादातर लोगों को यह भी नहीं पता है कि उन्होंने असल में क्या कहा। लेकिन ट्रोल टीम उन पर टूट पड़ी हैं।

By हरिशंकर व्यास

भारत की हिंदी पत्रकारिता में मौलिक चिंतन, बेबाक-बेधड़क लेखन का इकलौता सशक्त नाम। मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक-बहुप्रयोगी पत्रकार और संपादक। सन् 1977 से अब तक के पत्रकारीय सफर के सर्वाधिक अनुभवी और लगातार लिखने वाले संपादक।  ‘जनसत्ता’ में लेखन के साथ राजनीति की अंतरकथा, खुलासे वाले ‘गपशप’ कॉलम को 1983 में लिखना शुरू किया तो ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ में लगातार कोई चालीस साल से चला आ रहा कॉलम लेखन। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम शुरू किया तो सप्ताह में पांच दिन के सिलसिले में कोई नौ साल चला! प्रोग्राम की लोकप्रियता-तटस्थ प्रतिष्ठा थी जो 2014 में चुनाव प्रचार के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी का सर्वप्रथम इंटरव्यू सेंट्रल हॉल प्रोग्राम में था।आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों को बारीकी-बेबाकी से कवर करते हुए हर सरकार के सच्चाई से खुलासे में हरिशंकर व्यास ने नियंताओं-सत्तावानों के इंटरव्यू, विश्लेषण और विचार लेखन के अलावा राष्ट्र, समाज, धर्म, आर्थिकी, यात्रा संस्मरण, कला, फिल्म, संगीत आदि पर जो लिखा है उनके संकलन में कई पुस्तकें जल्द प्रकाश्य।संवाद परिक्रमा फीचर एजेंसी, ‘जनसत्ता’, ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, ‘राजनीति संवाद परिक्रमा’, ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नींव से निर्माण में अहम भूमिका व लेखन-संपादन का चालीस साला कर्मयोग। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में नब्बे के दशक की एटीएन, दूरदर्शन चैनलों पर ‘कारोबारनामा’, ढेरों डॉक्यूमेंटरी के बाद इंटरनेट पर हिंदी को स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं के बहुभाषी ‘नेटजॉल.काम’ पोर्टल की परिकल्पना और लांच।

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