भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों की प्रकृति अब सामान्य नहीं रही है। हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले ने दोनों देशों के बीच तनाव की आग में घी डाल दिया है।
पाकिस्तान इस समय भय और आशंका के साये में जी रहा है कि भारत कब, कहां और किस रूप में जवाबी कार्रवाई करेगा। और यह डर केवल काल्पनिक नहीं है — इसकी ठोस बुनियाद है।
पुलवामा हमले के बाद भारत ने जिस प्रकार से पाकिस्तान को करारा जवाब देते हुए एयरस्ट्राइक की थी, वह आज भी वहां के सत्ताधारियों की नींद उड़ाए हुए है।
इस बार भी कुछ वैसा ही हो सकता है — लेकिन फर्क ये है कि इस बार भारत की रणनीति कुछ और ही बड़ी और चौंकाने वाली लग रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, जो देश की सुरक्षा नीति के सबसे अहम स्तंभ माने जाते हैं,(पहलगाम ) इस बार केवल सैन्य जवाब तक सीमित नहीं रहना चाहते। वह एक ऐसा गेम प्लान बना रहे हैं, जो पाकिस्तान को हर मोर्चे पर हिला कर रख दे।
दरअसल, साल 2014 में अजीत डोभाल ने शास्त्र विश्वविद्यालय में आयोजित नानी पालखीवाला स्मृति व्याख्यान में अपने विचार रखते हुए ‘डिफेंसिव ऑफेंस’ की अवधारणा को विस्तार से समझाया था।
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उनका मानना था कि भारत लंबे समय से एक रक्षात्मक नीति अपनाता आ रहा है, जिसमें हम केवल तब प्रतिक्रिया देते हैं जब पाकिस्तान कोई उकसावे वाली हरकत करता है। यह रणनीति भारत को बार-बार नुकसान उठाने पर मजबूर करती है, क्योंकि हम अपने ही घर में नुकसान सहते हैं और फिर जवाब देने की सोचते हैं।
डोभाल ने साफ कहा था कि अब समय आ गया है जब भारत को ‘डिफेंसिव ऑफेंस’ यानी “रक्षात्मक आक्रामकता” को अपनाना चाहिए — जिसमें हम अपने दुश्मन के अंदर जाकर, उसके तंत्र और सोच को निशाना बनाएं।
ये रणनीति सिर्फ गोली या बम तक सीमित नहीं होती, बल्कि साइकोलॉजिकल वॉरफेयर, इंटेलिजेंस ऑपरेशन, आर्थिक दबाव, और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के जरिये दुश्मन को अंदर से तोड़ने की नीति होती है।
अब, जब पहलगाम जैसा आतंकी हमला होता है, तो अजीत डोभाल के दिमाग में केवल तात्कालिक जवाब नहीं होता, बल्कि दीर्घकालिक रणनीति तैयार की जाती है — जो पाकिस्तान की नींव तक को हिला सके।
ये रणनीति पाकिस्तान (पहलगाम ) के भीतर मौजूद उसके ही दुश्मनों को साधने, अलगाववाद को हवा देने, और आर्थिक तथा अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर उसे अलग-थलग करने की दिशा में भी हो सकती है।
इसलिए आज जब पाकिस्तान सांसें थाम कर भारत के कदम का इंतजार कर रहा है, तो वह डर सिर्फ एक और स्ट्राइक का नहीं है — वह डर उस अज्ञात और अप्रत्याशित रणनीति का है, जिसे अजीत डोभाल जैसे रणनीतिकार अंजाम दे सकते हैं।
अंततः, भारत अब सिर्फ जवाब नहीं देना चाहता — भारत अब अपने दुश्मन की सोच को बदल देना चाहता है। यही है अजीत डोभाल की असली रणनीति।
पहलगाम के लिए डोभाल की रणनीति
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल एक बार फिर सुर्खियों में हैं, और इस बार वजह है उनकी वह सोच जो भारत की सुरक्षा नीति को एक नए आक्रामक मोड़ की ओर ले जाती दिखाई दे रही है।
डोभाल पहले भी स्पष्ट संकेत दे चुके हैं कि अगर पाकिस्तान भारत के खिलाफ “एक मुंबई” जैसी घटना को अंजाम देता है, तो उसे इसके बदले “बलूचिस्तान” खोने के लिए तैयार रहना होगा।
यह बयान कोई साधारण चेतावनी नहीं, (पहलगाम ) बल्कि भारत की सुरक्षा रणनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत था – अब भारत सिर्फ हमलों को सहने वाला नहीं रहेगा, बल्कि आक्रामक रुख अपनाएगा और दुश्मन की कमजोर नसों पर वार करेगा।
सूत्रों के अनुसार, डोभाल पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की एक सधी हुई रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसमें पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क को वैश्विक मंच पर बेनकाब करना,(पहलगाम ) वहां की आतंरिक विफलताओं को उजागर करना और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के जरिए पाकिस्तान की रणनीतिक घेराबंदी करना शामिल है।
ये सब बातें भारत की एक लंबी कूटनीतिक और खुफिया योजना की ओर इशारा करती हैं, जिसमें केवल सैन्य बल नहीं, बल्कि सूचना, कूटनीति और रणनीतिक साझेदारी का भी गहरा रोल है।
पाकिस्तान को घेरने की गुप्त योजना?
फिलहाल पाकिस्तान के हालात भी डोभाल की रणनीति को जमीन पर उतारने के लिए अनुकूल नज़र आ रहे हैं। खैबर पख्तूनख्वा से लेकर इस्लामाबाद तक सरकार के खिलाफ बगावत और प्रदर्शन जोरों पर हैं।
वहां की आम जनता का गुस्सा अब सेना के खिलाफ खुलकर सामने आने लगा है, जो पहले एक अकल्पनीय बात थी।(पहलगाम ) ऐसे में अगर भारत कोई बड़ा कूटनीतिक या रणनीतिक कदम उठाता है, तो पाकिस्तान के भीतर से ही उसे विरोध का सामना करना पड़ेगा।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य भी भारत के पक्ष में है। (पहलगाम ) अमेरिका, यूरोप और कई खाड़ी देशों ने आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का खुला समर्थन किया है।
वहीं, पाकिस्तान का सबसे करीबी सहयोगी चीन भी अब भारत के साथ अपने रिश्तों को सुधारने की दिशा में बढ़ रहा है। (पहलगाम ) यह बदलाव चीन की अपनी आर्थिक और रणनीतिक प्राथमिकताओं के चलते है, जो भारत को एक स्थिर और लाभदायक साझेदार के रूप में देखना चाहता है।
इन सभी कारकों को जोड़कर देखें तो यह समय पाकिस्तान पर प्रहार करने के लिए सबसे उपयुक्त माना जा रहा है – न केवल जवाबी कार्रवाई के रूप में, बल्कि एक निर्णायक कूटनीतिक जीत के रूप में। डोभाल की चुप्पी के पीछे एक बड़ी हलचल है, एक ऐसी योजना जो शायद पाकिस्तान की नीतियों को हमेशा के लिए बदल दे।
क्या डोभाल की यह रणनीति पाकिस्तान की नीतियों को जड़ से हिला देगी? यह वक्त बताएगा। लेकिन इतना तो तय है – भारत अब सिर्फ जवाब देने वाला नहीं, बल्कि रणनीति गढ़ने वाला देश बन चुका है।
डोभाल की प्लानिंग से सकते में पाक
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की रणनीतिक सोच और अद्वितीय कार्यशैली ने एक बार फिर पाकिस्तान को चिंता में डाल दिया है। डोभाल जैसे अनुभवी और दूरदर्शी अधिकारी के साथ, केंद्र सरकार स्पष्ट रूप से यह संकेत दे रही है कि अब सिर्फ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि ठोस कार्यवाही का समय आ गया है।
खासतौर पर जब देश की सीमाओं पर लगातार चुनौतियाँ खड़ी की जा रही हों और निर्दोष नागरिक आतंकी हमलों का शिकार बन रहे हों, तब ऐसी सशक्त नीति का होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
पठानकोट हमले के बाद डोभाल (पहलगाम ) को लेकर कुछ विरोध के स्वर उभरे थे, लेकिन उनकी सोच को लेकर सरकार के भीतर जो भरोसा है, वह आज भी अडिग है।
उनका ‘डिफेंसिव ऑफेंस’ का सिद्धांत अब केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक ज़मीनी रणनीति का रूप ले चुका है। यह नीति बताती है कि भारत अब केवल रक्षात्मक मुद्रा में नहीं रहेगा, बल्कि जहां से खतरा उत्पन्न हो रहा है, वहीं जाकर उसे समाप्त किया जाएगा।
हाल ही में पहलगाम जैसे हमलों ने देश को एक बार फिर आहत किया है। इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की आग अब भी धधक रही है और इसे रोकने के लिए परंपरागत तरीकों से इतर कुछ निर्णायक कदम उठाने होंगे। ऐसे समय में डोभाल की योजनाएं एक सख्त लेकिन आवश्यक जवाब बनकर सामने आ रही हैं।
डोभाल की सोच स्पष्ट है — शांति की कामना वही कर सकता है जो युद्ध के लिए तैयार हो। उनकी नीति केवल जवाब देने तक सीमित नहीं है, बल्कि दुश्मन की योजना को उसकी शुरुआत में ही ध्वस्त करने पर केंद्रित है। यही वजह है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों और सैन्य तंत्र में बेचैनी का माहौल देखा जा सकता है।
भारत अब उस दौर में प्रवेश कर चुका है जहाँ वह सिर्फ हमलों के बाद प्रतिक्रिया नहीं देगा, बल्कि proactive होकर अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। और इस दिशा (पहलगाम ) में डोभाल की भूमिका एक मार्गदर्शक की तरह है — न सिर्फ रणनीति के स्तर पर, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति मज़बूत करने के लिहाज़ से भी।
इसलिए, जब भी कोई यह सवाल करे कि भारत अब किस दिशा में जा रहा है, तो उत्तर स्पष्ट है — आक्रामक रक्षात्मक नीति के साथ, डोभाल के नेतृत्व में एक सुरक्षित और संप्रभु भारत की ओर।