गुवाहाटी। असम में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार ने एक बड़ा कानून बनाने की पहल की है। सरकार ने असम विधानसभा में बहुविवाह पर पाबंदी लगाने के लिए लाए गए विधेयक को पास करा लिया है। अब राज्यपाल की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा। इसमें एक से ज्यादा विवाह करने पर 10 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। कानून के मुताबिक बहुविवाह करने वाले निकाय चुनाव नहीं लड़ पाएंगे और उनको सरकारी नौकरी भी नहीं मिलेगी। यह एक ऐतिहासिक कानून माना जा रहा है।
इस कानून में कुछ अपवाद भी रखा गया है। आदिवासी समूहों को इस कानून से बाहर रखा गया है। साथ ही संविधान की छठी अनुसूची के जरिए संरक्षित इलाकों को भी इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। यह बिल पास होने के बाद मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक बयान में कहा कि यह बिल इस्लाम विरोधी नहीं है। गौरतलब है कि मुस्लिम समाज में बहुविवाह की प्रथा प्रचलित है और तीन तलाक को अवैध करने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुविवाह रोकने का कानून लाने की चर्चा कई बार हुई है।
इससे पहले मंगलवार को मुख्यमंत्री ने यह विधेयक सदन में पेश किया था। गुरुवार को पर चर्चा हुई। चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, ‘अगर मैं असम में दोबारा सत्ता में आता हूं तो पहले सत्र में हम असम में यूसीसी लाएंगे। बहुविवाह विरोधी कानून असम में यूसीसी की ओर पहला कदम है’। गौरतलब है कि असम में उत्तराखंड की तर्ज पर समान नागरिक कानून यानी यूसीसी लागू कनरे की तैयारी चल रही है।
मुख्यमंत्री के साथ साथ गृह विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे सरमा ने विधानसभा अध्यक्ष विश्वजीत डिमरी की अनुमति से ‘असम बहुविवाह निषेध विधेयक, 2025′ पेश किया था। यह विधेयक विपक्षी दल कांग्रेस, सीपीएम और रायजोर दल के विधायकों की गैरहाजिरी में पेश किया गया। इन पार्टियों के विधायक सिंगर जुबिन गर्ग की मौत मामले पर चर्चा के बाद सदन से बाहर चले गए थे। बहरहाल, विधेयक के ‘उद्देश्यों और कारणों के विवरण’ के अनुसार, इसका उद्देश्य राज्य में बहुविवाह और बहुपत्नी प्रथाओं को प्रतिबंधित करना और समाप्त करना है।


