नई दिल्ली। पतंजलि समूह एक नए विवाद में फंस गया है। शरबत जिहाद वाले विज्ञापन के बाद उनकी कंपनी च्यवनप्राश के विज्ञापन विवाद में फंस गई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को पतंजलि को निर्देश दिया है कि वह डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ कोई भी नकारात्मक या भ्रामक विज्ञापन न दिखाए। जस्टिस मिनी पुष्करणा ने डाबर की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया। गौरतलब है कि डाबर आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली भारत की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित कंपनियों में से एक है।
डाबर ने हाई कोर्ट में कहा कि पतंजलि समूह की ओर से दिखाए जा रहे विज्ञापन न सिर्फ उनके उत्पाद को बदनाम करते हैं, बल्कि उपभोक्ताओं को गुमराह भी करते हैं। च्यवनप्राश एक पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधि है, जिसे ड्रग्स और कॉस्मेटिक एक्ट के तहत ही बनाना होता है। ऐसे में अन्य ब्रांड्स को सामान्य कहना गलत, भ्रामक और नुकसानदायक है। इस मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी। उससे पहले पतंजलि च्यवनप्राश के विज्ञापन पर रोक लगा दी गई है।
डाबर की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील संदीप सेठी ने कहा, “पतंजलि अपने विज्ञापन में डाबर के च्यवनप्राश को ‘सामान्य’ और आयुर्वेद की परंपरा से दूर बताकर प्रोडक्ट की छवि को नुकसान पहुंचा रहा है। इस विज्ञापन में रामदेव खुद यह कहते नजर आते हैं कि जिन्हें आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं, वे पारंपरिक च्यवनप्राश कैसे बना सकते हैं”? इसके अलावा डाबर ने कहा, ‘पतंजलि के विज्ञापन में 40 औषधियों वाले च्यवनप्राश को साधारण कहा गया है। यह हमारे उत्पाद पर सीधा निशाना है’। गौरतलब है कि डाबर अपने च्यवनप्राश को 40 प्लस जड़ी बूटियों से बने होने का दावा करता है।