नई दिल्ली। भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और इतिहास रच दिया। चंद्रयान तीन के चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरने के बाद अब भारत ने सूर्य अभियान को सफलतापूर्वक पूरा किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो की ओर से सूर्य के अध्ययन के लिए भेजा गया मिशन आदित्य एल-1 सफलतापूर्वक अंतिम कक्षा में पहुंच गया है। यह मिशन अगले पांच साल तक सूर्य का अध्ययन करेगा और उसकी तस्वीरें व डाटा भेजेगा।
इसरो के सूर्य मिशन की महत्वाकांक्षी यात्रा पिछले साल दो सितंबर को शुरू हुई थी और 126 दिन की यात्रा के बाद यह अपनी अंतिम कक्षा में पहुंचा हैं। इसे दो सितंबर को सुबह 11 बज कर 50 मिनट पर पीएसएलवी-सी57 के एक्सएल वर्जन रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा के स तीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था। शनिवार को 126 दिन की यात्रा के बाद आदित्य एल-1 धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर लैंग्रेज प्वाइंट वन पर पहुंच गया है। यह वो जगह है, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होता है।
शनिवार शाम को अपनी कक्षा में पहुंचा आदित्य एल-1 चार सौ करोड़ रुपए की लागत से बना है और इसका वजह 15 सौ किलो है। यह सेटेलाइट सूर्य का अध्ययन करने वाला पहली अंतरिक्ष-आधारित भारतीय वेधशाला के रूप में काम करेगा। शनिवार शाम करीब चार बजे आदित्य एल-1 को वैज्ञानिकों ने लैंग्रेज वन के चारों ओर एक कक्षा में पहुंचा दिया। लैंग्रेज वन प्वाइंट पृथ्वी और सूर्य के बीच की कुल दूरी का करीब एक प्रतिशत है।
इसरो के अधिकारियों ने बताया कि इस मिशन का मुख्य उद्देश्य सौर वातावरण में गतिशीलता, सूर्य के परिमंडल की गर्मी, सूर्य की सतह पर सौर भूकंप या कोरोनल मास इजेक्शन यानी सीएमई, सूर्य के धधकने संबंधी गतिविधियों, उनकी विशेषताओं और पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष में मौसम संबंधी समस्याओं को समझना है।
इसरो की सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर बधाई दी है। उन्होंने लिखा है- यह उपलब्धि सबसे जटिल अंतरिक्ष अभियानों को साकार करने में हमारे वैज्ञानिकों के अथक समर्पण का प्रमाण है। पीएम मोदी ने लिखा है- मैं असाधारण उपलब्धि की सराहना करने में राष्ट्र के साथ शामिल हूं। हम मानवता की भलाई के लिए विज्ञान की नई सीमाओं को पार करते रहेंगे।