नई दिल्ली। पतंजलि समूह के भ्रामक विज्ञापनों के मामले में सुनवाई करते हुए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की। सर्वोच्च अदालत ने कहा- अगर लोगों को प्रभावित करने वाले किसी उत्पाद या सेवा का विज्ञापन भ्रामक पाया जाता है तो उसका प्रचार करने वाले सेलिब्रिटीज और सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स भी समान रूप से जिम्मेदार होंगे। सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई की। इसमें कहा गया है कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार किया।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा- ब्रॉडकास्टर्स को कोई भी विज्ञापन दिखाने से पहले एक सेल्फ डिक्लेरेशन फॉर्म दाखिल करना होगा, जिसमें कहा जाएगा कि ये विज्ञापन नियमों का अनुपालन करते हैं। अदालत ने कहा कि टीवी प्रसारणकर्ता ब्रॉडकास्ट सर्विस पोर्टल पर घोषणा अपलोड कर सकते हैं। उसने साथ ही आदेश दिया कि प्रिंट मीडिया के लिए चार हफ्ते के भीतर एक पोर्टल स्थापित किया जाए। कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों से जुड़ी 2022 की गाइडलाइन का भी जिक्र किया।
इसकी गाइडलाइन में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उस उत्पाद या सेवा के बारे में पर्याप्त जानकारी या अनुभव होना चाहिए, जिसका वह प्रचार कर रहा है। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह भ्रामक नहीं है। अदालत ने आईएमए के अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन की टिप्पणियों पर भी आपत्ति जताई और नोटिस जारी किया। असल में 23 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए की आलोचना की थी। इसके बाद अशोकन ने एक इंटरव्यू में कोर्ट की टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। इस पर कोर्ट ने आईएमए से कहा- आप कहते हैं कि दूसरा पक्ष गुमराह कर रहा है, आपकी दवा बंद कर रहा है- लेकिन आप क्या कर रहे थे?! … हम स्पष्ट कर दें, यह अदालत किसी भी तरह की पीठ थपथपाने की उम्मीद नहीं कर रही है।