nayaindia Rram mandir inauguration कहां नहीं पहुंचेगी अयोध्या की हवा?

कहां नहीं पहुंचेगी अयोध्या की हवा?

भारतीय जनता पार्टी ने देश के बड़े हिस्से में 2024 के लिए अपना खेल सजा लिया है। पारंपरिक रूप से भाजपा के असर वाले इलाके अयोध्या में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा से गदगद हैं। मंदिर में लगाने के लिए एटा से 24 सौ किलो का घंटा बन कर आ रहा है, जिसकी आवाज दो किलोमीटर दूर से सुनाई देगी। कन्नौज से खास किस्म का इत्र लाया जा रहा है तो अहमदाबाद से सोने की परत वाला पांच सौ किलो वजन का नगाड़ा अयोध्या पहुंच रहा है। गुजरात से ही खास तौर पर बनाया गया ध्वज दंड अयोध्या भेजा जा रहा है। बड़ौदा में 365 तत्वों को मिला कर 108 फीट की अगरबत्ती बनी है, जो अयोध्या में जलाई जाएगी और डेढ़ महीने तक जलती रहेगी। अलीगढ़ का बना 10 किलो का विशेष ताला लाया गया है तो नागपुर से 70 क्विंटल राम हलवा अयोध्या पहुंचेगा। देश के लगभग हर हिस्से से कुछ न कुछ उपहार अयोध्या पहुंच रहा है। इसके अलावा हर शहर और कस्बे में स्थानीय मंदिरों के जरिए भाजपा के नेता लोगों के घर में अक्षत और राममंदिर की फोटो पहुंचा रहे हैं।

सो, जहां तक अयोध्या की हवा पहुंच गई है या पहुंच रही है वहां भाजपा के सामने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की चुनौती नहीं है। वहां माहौल राममय होता हुआ है और भाजपा व्यापक हिंदू समाज को अपने साथ खड़ा करने में कामयाब दिख रही है। असली लड़ाई वहां है, जहां अयोध्या की हवा नहीं पहुंची है या हवा पहुंची है तो उसका लंबा और गहरा असर नहीं दिखेगा। या भाजपा की हवा को काउंटर करने के लिए विपक्षी पार्टियों के पास अपनी योजना है। ऐसे राज्यों में डेढ़ सौ से अधिक लोकसभा सीटें हैं। ऐसे राज्य, जहां हवा को लेकर शंका है तो उनमें प्रमुख तौर पर पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार और झारखंड हैं। इन पांच राज्यों में लोकसभा की कुल 157 सीटें हैं। इनमें से भाजपा के पास कुल 72 सीटें अपनी हैं। उसकी सहयोगी पार्टियों जैसे लोक जनशक्ति पार्टी, आजसू, शिव सेना और एनसीपी के पास 20 के करीब सीटें हैं। यानी कुल 92 सीटें भाजपा के पास और अकाली दल को छोड़ कर 62 सीटें विपक्षी पार्टियों के पास हैं। इनके अलावा दक्षिण भारत के दो राज्य- कर्नाटक और तेलंगाना हैं, जहां भाजपा की स्थिति बहुत अच्छी है लेकिन विपक्ष के पास भी मजबूत रणनीति है। अगर इन दो राज्यों को जोड़ें तो कुल सीटों की संख्या 199 हो जाती है, जिसमें भाजपा और उसकी सहयोगियों के पास 120 सीटें हो जाएंगी। केसीआर की पार्टी को छोड़ कर विपक्ष के पास इन सात राज्यों में 66 सीटें हैं।

हालांकि कई और राज्य हैं, जहां अयोध्या की हवा का असर कम होगा, जैसे दक्षिण भारत के राज्य हैं। लेकिन वहां भाजपा पहले से ही कमजोर है। सात राज्यों का जिक्र इसलिए है क्योंकि इन राज्यों में भाजपा मजबूत है और पहले के चुनावों में उसने अच्छा प्रदर्शन किया था। इस बार भी भाजपा इन राज्यों में पिछला प्रदर्शन दोहराने के साथ कुछ नई सीटें जीतने की उम्मीद में है। दूसरी ओर विपक्ष भी इन राज्यों में मजबूत है। ध्यान रहे उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में या मध्य और पश्चिम भारत के राज्यों में भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस के साथ है और वहां कांग्रेस का पिछले दो चुनावों में सफाया हुआ था और इस बार भी बहुत अच्छे हालात नहीं दिख रहे हैं। गुजरात में कांग्रेस साफ हो चुकी है और राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के चुनाव में कांग्रेस ने 40 फीसदी वोट जरूर हासिल किए हैं लेकिन जब लोकसभा चुनाव की बात आती है तो कांग्रेस के वोट घट जाते हैं। ऐसा पिछले चुनाव में भी देखने को मिला था। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश जैसे उत्तरी राज्यों में भाजपा के सामने किसी पार्टी की कोई हैसियत पहले भी नहीं थी और अयोध्या के बाद तो तस्वीर बदलेगी ही।

सो, विपक्ष के लिए उम्मीद और संभावना वाले प्रदेश सात हैं। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, पंजाब, कर्नाटक और तेलंगाना। इन राज्यों में भाजपा की राजनीतिक रणनीति और दांव-पेंच की परीक्षा है तो कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों की समझदारी, एलायंस, चुनाव की माइक्रो रणनीति देखने लायक होगी। इन राज्यों में एकतरफा चुनाव नहीं होगा। भाजपा अगर इन राज्यों में मजबूत है तो विपक्ष भी बराबर मजबूत है। इन राज्यों में विपक्ष के पास मजबूत नेता हैं। यह भी कह सकते हैं कि विपक्ष के जितने भी मजबूत नेता और बड़े चेहरे हैं वो इन्हीं राज्यों से आते हैं। नीतीश कुमार, लालू प्रसाद, ममता बनर्जी, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, मल्लिकार्जुन खड़गे, सिद्धरमैया, डीके शिवकुमार, रेवंत रेड्डी और कुछ हद तक अरविंद केजरीवाल का नाम ले सकते है। इन सभी नेताओं को अपने असर वाले राज्यों में भाजपा को रोकना है। इन सभी नेताओं ने बुरे समय में भी अपना किला बचाए रखा था। इस बार इन तमाम बड़े नेताओं को अपने किले का कब्जा अपने हाथ में लेना है। तभी इन सात राज्यों में चुनाव घमासान होगा। भाजपा साम, दाम, दंड और भेद सारे उपाय आजमाएगी, बल्कि पहले से आजमा रही है। पार्टियों को तोड़ा गया है। नेताओं को तोड़ने की कोशिश है और केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई पूरी तीव्रता के साथ है। बावजूद इसके यदि विपक्षी नेता अपनी एकता बनाए रखते हैं तो इन सात राज्यों से देश की चुनावी तस्वीर बदलेगी।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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