nayaindia Brain Chip दिमागी चिप!

दिमागी चिप!

लगता है इसी सदी में जहां जलवायु परिवर्तन पृथ्वी को खाएगा वही विज्ञान नए मानव रचेगा! नई मानव रचना में खोजी, मौलिक और क्रिएटिव पश्चिमी बुद्धि इन दिनों गजब ऊंचाइयों पर है। प्रमाण गुजरे सप्ताह की तीन खबरें हैं। एक, अमेरिकी कारोबारी इलॉन मस्क ने बताया कि मनुष्य खोपड़ी में न्यूरालिंक चिप इम्प्लांट हुआ है और शुरुआती नतीजे आशाजनक हैं। दो, अमेरिका में पहली बार जीन थेरेपी तकनीक के इलाज से 11 साल के बहरे बच्चे ऐसाम ने जीवन में पहली बार अपने पिता की आवाज सुनी। तीन, जीन तकनीक से मानव प्राइमेट्स याकि बंदर का चीन में क्लोन बना है। यह नर रीसेस बंदर स्वस्थ और खुश है। वह दो साल का हो गया है। इन तीन खबरों के साथ दिन दुनी, रात चौगुनी की रफ्तार से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) मनुष्य दिमाग की जगह जैसे ले रही है और नई क्षमताओं के रोबो की जो दुनिया बन रही है, उसकी वास्तविकताओं में बूझें तो अनुमान लगेगा, सदी के बाकी सालों में इंसानों की दुनिया बदली हुई होगी।

दिमाग में चिप भविष्य की संभावनाओं में मील का पत्थर है। कल्पना करें दिमाग की गतिविधि को प्रभावित करने (अंततः नियंत्रण करने वाला) वाले चिप पर। खोपड़ी के भीतर, खोपड़ी के काम में हस्तक्षेप करके उसके द्वारा शरीर को यह निर्देश देना कि यह फलां काम करो! चिप लकवे के मारे व्यक्ति के शरीर में हलचल बनवा देगा। उसे खड़ा कर देगा। इसके लिए दुनिया के नंबर एक उद्यमी इलॉन मस्क ने 2016  में न्यूरालिंक नाम की एक स्टार्टअप कंपनी स्थापित की थी। अब नौ साल बाद मनुष्य की खोपड़ी में उसका चिप लग गया है। दिमागी गतिविधियों, उसके कामकाज की अत्यधिक बारीक, नैनो सरंचना में शरीर के काम, क्रिया विशेष के लिंक को पकड़ कर खोपड़ी के भीतर वह चिप लगा है जो अपने निर्देशों से न्यूरोलॉजिकल विकारों जैसे पक्षाघात से पीड़ित व्यक्तियों के जीवन में गतिविधि ला देगा। पहले इस चिप का परीक्षण बंदरों में हुआ था। इलॉन मस्क के अनुसार न्यूरालिंक चिप प्रत्यारोपण करने से किसी भी बंदर की मौत नहीं हुई। उसके बाद कंपनी को पिछले साल अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्‍ट्रेशन, एफडीए ने मनुष्य दिमाग में चिप प्रत्यारोपण और परीक्षण की मंजूरी दी थी।

और अब जैविक मनुष्य दिमाग में चिप के सफल परीक्षण की खबर है। न्यूरालिंक कंपनी के अनुसार उसके एन1 चिप ऐसे पदार्थ से बने खोल में होंगे, जिसे शरीर के अंदर सुरक्षित रूप से लगाया जा सकता है। चिप्स “शरीर के अंदर के हालात से कहीं ज्यादा खराब और विपरीत हालात” में भी काम कर सकेंगे। एन1 चिप में एक छोटी सी बैटरी लगी होती है, जिसे बिना किसी तार के, बाहर से ही चार्ज किया जा सकेगा। इसका चार्जर बहुत छोटा और कहीं से भी काम करने में समर्थ।

सोचें, दिमाग में चिप और वह बाहर से (मतलब वायरलेस तरीके से) अपने आप चार्जर से चार्ज होता हुआ। जाहिर है बैटरी कब चार्ज होनी है इसका मैसेज टेलीपैथी (वायरलेस तकनीक) से होता हुआ। तभी कंपनी ने बताया है कि पहले टेस्ट का मकसद प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) (एन1) और सर्जिकल रोबोट (आर1) की सुरक्षा का मूल्यांकन है। साथ ही लकवाग्रस्त व्यक्ति को अपनी थिंकिंग से बाहरी उपकरणों को कंट्रोल करने में समर्थ करने के लिए टेलीपैथी वायरलेस ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) की प्रारंभिक कार्यक्षमता का आकलन करना भी है।

मतलब यह हुआ कि इस टेलीपैथी तकनीक में व्यक्ति के दिमाग के सोचते ही उसका फोन या कंप्यूटर से संवाद याकि कंट्रोल बनेगा। सो, एक तरफ दिमाग में निर्देशों याकि प्रोग्रामिंग से भरा चिप। उससे फिर विकंलागों, लाचार, लकवाग्रस्त लोगों के शरीर अंग काम करते हुए। और चिप शरीर बाहर के फोन, कंप्यूटर से बात करता हुआ, उन्हें कंट्रोल करता हुआ तो बैटरी वायरलेस तरीके से चार्ज होते हुए। एक और अद्भुत बात, कंपनी ने सिलाई मशीन जैसा उपकरण बनाया है जो दिमाग के भीतर बहुत पतले धागे को प्रत्यारोपित करने में सक्षम है। और ये धागे इलेक्ट्रोड के साथ एक कस्टम-डिजाइन किए गए चिप से जुड़ते हैं, जो न्यूरॉन्स के समूहों से डाटा पढ़ते हैं।

तभी वह वक्त दूर नहीं है जब एक तरफ आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में तेजी से होते विकास से रोबो का मशीनी दिमाग आम आदमियों की औसत बुद्धि से अधिक कुशाग्र होगा वहीं इंसान की खोपड़ी का जैविक दिमाग चिपों से भरा या एक ही ऐसा चिप लिए हुए होगा जो शरीर और बुद्धि दोनों को अपने निर्देशों से चलाएगा। फिर तीसरी हकीकत चीन द्वारा प्राइमेट्स की क्लोनिंग याकि जैविक बंदरों का सफल निर्माण है।

क्लोनिंग पर चीन लगातार शोध करता हुआ है। सन् 2018 में शंघाई चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के न्यूरोसाइंस संस्थान ने बताया था कि नवंबर 2017 में दो क्लोन मकॉक बंदर ‘जोंग जोंग’ और ‘ख्वा ख्वा’ का जन्म हुआ। अब उसने रीसेस बंदर के क्लोन बनने की सूचना दी है। बताया है कि यह नर बंदर स्वस्थ और खुश है। इसकी उम्र दो साल है।

इसका अर्थ है कि आने वाले वर्षों में बंदरों को बनाते-बनाते इंसानी क्लोन बनने की सूचना आएगी। तब यह भी संभव है कि चीन अपने घमंड, अपनी ताकत में जीन थेरेपी, एआई बुद्धि के दिमागी चिपों से क्लोन मनुष्यों की फैक्टरियां ही बना डाले। फैक्टरियों में कामगारी या लड़ाकू सैनिकों जैसे खास काम के लिए मनुष्य (रोबो भी) पैदा होने लगें। यों अभी मनुष्य की सटीक आनुवांशिक नकल बनाना आसान नहीं है। पर जीन थेरेपी-तकनीक भी उतनी ही तेजी से विकसित हो रही है जैसे एआई, चिप, स्पेस और जैविक बॉयो टेक्नोलोजी में विकास छलांग मारते हुए है। जीन थेरेपी से अमेरिका में अभी 11 साल के बहरे बच्चे का सुनना संभव हुआ तो आगे मनुष्य के देखने, सुनने, दिल और पाचन तंत्र आदि के पहलू और इलाज में जीन तकनीक का उपयोग निश्चित होना है। उस नाते बहरेपन को खत्म करने की ताजा सफलता दुनिया भर के उन मरीजों के लिए खुशखबरी है जो जेनेटिक म्यूटेशंस के कारण सुनने की क्षमता खोते हैं। नई सफलता से भविष्य में 150 से ज्यादा उन जीन-असामान्यताओं को ठीक करने का रास्ता खुलेगा, जिनके कारण बच्चों में बहरापन होता है। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ अखबार ने इस खबर का ब्योरा देते हुए बताया है कि बच्चा सुन लेगा लेकिन शायद ही कभी बोल पाए क्योंकि मस्तिष्क का जो हिस्सा बोलने की क्षमता देता है, वह पांच साल की उम्र में ही बंद हो जाता है।

पर क्या बोलने की क्षमता की बंद तंत्रिकाओं को भविष्य में मष्तिष्क में चिप के जरिए दुरूस्त नहीं किया जा सकेगा? दिमाग से शरीर के जो हिस्से सुन्न, लाचार, बंद हैं उन्हें यदि चिप से दुरूस्त किया जा सकता है तो तकनीक न केवल नकली बुद्धि, नकली शरीर, नकली दिमाग बना देगी, बल्कि मुमकिन है मनुष्यों की कौम, सभ्यताओं की सोच और संरचनाओं को भी दिमागी चिप या जीन थेरेपी से बदलने लगे। और इसका फायदा तानाशाह-शैतान शासक उठाएंगे। वे लोगों को पालतू, अंधभक्त और पराधीन, गुलाम बनाने में विज्ञान-तकनीक के नए विकास भरपूर दुरूपयोग करेंगे।

दुर्भाग्य जो यह सब बुनियादी तौर पर अमेरिका व चंद पश्चिमी देशों के खोजियों, पुरुषार्थियों की उन टोलियों से होता हुआ है जो मूलत होमो सेपियन की खोजी प्रवृत्ति, सत्यशोधन के सनातनी आनुवांशिक बुनावट लिए वे स्वतंत्र बुद्धिमना हंस हैं, जिनकी चरैवति-चरैवति की अनंत उड़ान से ब्रह्माण्ड भी भेदा जाने लगा है।

विषयांतर हो गया है। फिलहाल सोचे, अमेरिका और उसके नंबर एक उद्यमी, टेस्ला कंपनी के मालिक इलॉन मस्क पर। कैसा अद्भुत उद्यमी है। मस्क ने बैटरी संचालित, बिना ड्राइवर के वाहन बना दुनिया में झंडा गाड़ा। दुनिया का नंबर एक अरबपति बना तब भी वह अपनी पूरी ऊर्जा के साथ अंतरिक्ष उड़ान के स्पेसक्राफ्ट की रिसर्च-निर्माण में पैसा उढ़ेलते हुए है तो दिमागी चिप और एआई आदि में भी शोध और निर्माण का धुनी निवेशक है। वैसे ध्यान रहे दिमागी चिप, जीन थेरेपी, एआई और स्पेस आदि में अमेरिकी उद्यमियों के अरबों डालर के निजी निवेश हैं। जितनी विशाल कंपनी उनकी उतनी ही विशाल फंडिंग। ठीक विपरीत जरा भारत के अडानी-अंबानियों की खरबपति जमात पर गौर करें। केवल और केवल क्रोनी पूंजीवाद से देश और 140 करोड़ लोगों को दूहना और मुनाफे की दुकानदारी के सेठ बने रहना। इसलिए क्योंकि 11 सौ सालों से जी हजूरी, गुलामी, लूट, भ्रष्टाचार, झूठ, पाखंडी विकास के इकोसिस्टम के आदी हम हिंदुओं की दिमागी व्याधियां इस कदर बुद्धि को कुंद किए हुए हैं कि नकल, जुगाड़ और झूठ में ही विकसित भारत, विश्व गुरू होने के इलहाम पाले रहते हैं। तभी हमारे पराधीन, भयाकुल,भक्त, जुगाड़ू दिमाग के बूते संभव नहीं जो मौलिक, रियलया सच्चे कोई पुरषार्थ हों या उद्यमी हिम्मत दिखाएं। मतलब भेड़-बकरी की मानसिकता से इतर यह हममें यह हिम्मत बने कि– कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों!

सो, अपनी भविष्यवाणी है कि जैसे अमेरिकी पुरुषार्थियों के गूगल, व्हाट्सअप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम से भारत जैसे देशों के दिमाग कुंद-बीमार होते हुए है वैसे ही आने वाले सालों में हमारी भयावह दुर्दशा होगी। वे दिमागी चिप बनेंगे, वे रोबो, वह क्लोन और वह एआई प्रोग्रामिंग बनेगी, जिनसे पृथ्वी के मानव हमेशा के लिए दो हिस्सों में विभाजित हो जाने हैं। दो दुनिया बननी है। एक दुनिया अमेरिका और पश्चिम के बुद्धिमना लोगों की होगी, जो पृथ्वी की शेष आबादी के इंसानों, उनके नेताओं, उनकी राजनीति, आर्थिकी के लिए दिमागी चिप बनाएंगे और भेड़ों की भीड के परोक्ष नियंत्रणकर्ता मालिक होंगे। मतलब इसी सदी के खत्म होते-होते बुद्धि-विज्ञान-तकनीक की मेधा के एकाधिकार वाली चंद करोड़ लोगों की एक दुनिया होगी तो दूसरी दुनिया उन अरबों लोगों की होगी जो गुलाम-भेड़ बकरी मनोदशा की नियति के साथ बुद्धिमानों की पहली दुनिया पर आश्रित रहेंगे। सोच सकते हैं सबसे बड़ी आबादी (140 से 165 करोड़) वाला भारत किस दुनिया का हिस्सा होगा!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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