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बच्चों, मीडियाकर्मियों की कब्रगाह

गाजा की वाहेल दहदू की दुनिया कतरा-कतरा करक बिखर रही है। तीन दिन पहले,  वाहेल ने अपने परिवार के पांचवे सदस्य, सबसे बड़े बेटे हमजा दह को दफनाया। चार महीने पहले उन्होंने अपनी पत्नी, 15 साल के बेटे, 7 साल की बेटी और 18 माह की पोती को सुपुर्देखाक किया था। परिवार के ये सभी लोग इजरायली हवाई हमलों में मारे गए थे।

बावजूद इसके वाहेल की हिम्मत टूटी नहीं है। वे इजराइल द्वारा गाजा में किए जा रहे नरसंहार को दुनिया को दिखाने में जुटे हुए हैं। वाहेल दाहूद, अल जज़ीरा के गाजा ब्यूरो चीफ हैं। उनके पुत्र हमजा भी अल जजीरा के संवाददाता थे और अपने एक साथी पत्रकार मुस्तफा थुराया के साथ यात्रा पर थे जब खान युनिस के पश्चिमी हिस्से में एक इजरायली मिसाइल उनकी कार से आ टकराई। जिस कब्रिस्तान में उनके पुत्र को दफनाया गया वहीं से बातचीत करते हुए वाहेल बुझे-बुझे लेकिन शांत नजर आए। उन्होंने कहा कि वे गाजा के उन ढेर सारे लोगों में से एक हैं जो हर दिन अपने प्रियजनों को अंतिम विदाई देने को मजबूर हैं।

गाजा न केवल ‘हजारों बच्चों की कब्रगाह’ बन गया है बल्कि यह मीडियाकर्मियों के लिए भी सबसे घातक इलाका है। गाजा पर इजरायली हमले शुरू होने के बाद के तीन महीनों में वहां 79 पत्रकार जान गवां चुके हैं और सैकड़ों घायल हुए हैं। सन् 1992 से कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्टस (सीपेजे) ने गाजा के इलाकों का कवरेज करने वाले पत्रकारों के आंकड़े संकलित करने प्रारंभ किया है। तब से लेकर आज तक, गाजा में पहले महीने में मारे गए पत्रकारों की संख्या किसी भी अन्य संघर्ष में मारे गए पत्रकारों से अधिक है। दूसरे युद्ध, जो रूस और यूक्रेन के बीच 2022 से जारी है, में अब तक कुल 17 पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई है। फ्रेंच कैमरामैन फ्रेडरिक लेकलेर्क-इमहाफ, जो मई में मारे गए, के बाद से वहां अब तक किसी पत्रकार ने अपनी जान नहीं खोई है।

मगर गाजा में मारे गए पत्रकारों की संख्या द्वितीय विश्वयुद्ध में मृत पत्रकारों की संख्या (69) से अधिक हो गई है। वियतनाम युद्ध में 63 पत्रकारों ने जान गंवाई थी और सीपीजे के अनुसार, ईराक में 2003 से लेकर अब तक 283 पत्रकार मारे हैं जिनमें युद्ध के पहले माह – मार्च 2003 और अप्रैल 2003  के बीच – मारे गए 11 पत्रकार भी शामिल हैं।

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि इजराइल-गाजा युद्ध अब तक के युद्धों में पत्रकारों, बच्चों, शिशुओं, महिलाओं, मानवता और सभ्यता के लिए सबसे घातक रहा है; और उसके प्रभावितों की संख्या भविष्य में और बढ़ेगी। एक विभीषिका के बाद दूसरी, एक नरसंहार के बाद दूसरा, हर दिन के हर घंटे में हो रहा है लेकिन इसके खिलाफ नाराजगी नजर नहीं आती। दुनिया के नेता अब भी इतने दब्बू और डरपोक बने हुए हैं कि वे साफ शब्दों में बीबी से विनाश और मौतें रोकने के लिए नहीं कह पा रहे हैं। दुनिया भर का मीडिया इतना भयभीत है कि वो लाईव टीवी पर चुपचाप गाजा को मलबे का ढेर बनता दिखा रहा है।पर खरी-खरी कहने की हिम्मत किसी की नहीं है।

जब इजराइल ने विदेशी पत्रकारों के गाजा में प्रवेश पर पाबंदी लगाई, तो जान हथेली पर रखकर सारी दुनिया को सच्चाई बताने का दायित्व फिलिस्तीनी पत्रकारों पर आ गया। जैसा कि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने कहा “इजराइल गाजा को मीडिया कवरेज से पूरी तरह महरूम करने के बहुत निकट पहुंच चुका है”।अब केवल फिलिस्तीनी ही वहां से सच्चाई बयां कर रहे हैं और एक-एक करके उन्हें भी खामोश किया जा रहा है। पत्रकार भी साधारण नागरिक हैं और गाजा में कोई भी स्थान उनके लिए महफूज नहीं है। इस छोटे से इलाके में लगातार चल रहे इजराइल के अंधाधुंध हमलों से सभी को खतरा है। पत्रकार अस्पतालों से खबरें दे रहे हैं, लेकिन अस्पतालों को भी निशाना बनाया जा रहा है, वे सुरक्षित स्थान की तलाश में जा रहे लोगों के काफिलों की खबरें दे रहे हैं, लेकिन उन काफिलों पर भी हमले हो रहे हैं। मरने वालों पत्रकारों की बढ़ती संख्या के बीच सीपीजे यह पता लगाने का प्रयास कर रहा है कि क्या जानबूझकर पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है? ऐसी शंका होने की एक वजह यह है कि लेबनान, जहाँ हालात इतने अराजकतापूर्ण नहीं हैं, वहां एक पत्रकार और कैमरामेन की मौत के संबंध में रिपोटर्स विदाउट बॉर्डर्स इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि इजराइल ने उन पर जानबूझकर हमला किया।

और यदि इजरायली सेना जानबूझकर पत्रकारों को निशाना बना रही है तो इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है। युद्ध जैसे-जैसे गंभीर रूप ले रहा है, मरने वालों की संख्या बढ रही है और समुदाय बर्बाद हो रहे हैं, वैसे=वैसे यहूदियों के प्रति जो सहानुभूति और भाईचारे का भाव था, वह तेजी से तिरोहित हो रहा है और यहूदी-विरोधी विचारधारा जोर पकड़ रही है।

लोग युद्धविराम का आव्हान कर रहे हैं। कल ही अमरीकी राष्ट्रपति जो बाईडन जब साऊथ कैरोलिना में एक ऐतिहासिक चर्च में भाषण दे रहे थे तब युद्धविराम के पक्ष में नारेबाजी के कारण उन्हे अपना भाषण रोकना पड़ा। इस स्थिति से इजराइल के शासक चिंतित हैं क्योंकि वे पश्चिमी हथियारों, अनुदान और कूटनीतिक समर्थन पर बहुत हद तक निर्भर हैं। यदि यूरोप और अमेरिका में जनमत उनके खिलाफ हो गया – जिसकी शुरूआत हो गई है – तो मदद खतरे में पड़ जाएगी। तो नैरेटिव को अपने पक्ष  में कैसे रखा जाए? गाजा से आने वाली आवाज और तस्वीरों को रोक दो, वहां मौजूद आईने तोड़ दो जिससे इजराइली सशस्त्र बलों द्वारा वहां ढाए जाने वाले ज़ुल्मों की दास्तानें छुपी रहें। यह अत्यंत निराशाजनक और त्रासद है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रेस इसका मूक दर्शक बना हुआ है और वे खबरें भी नहीं दे रहा हैं जो उसे मालूम हैं। ऐसा लगता है कि दुनिया की हर संस्था और हर नेता ने गाजा में हर दिन हो रही तबाही से नजरें फेर ली हैं।

जो हो, सलाम गाजा के उन पत्रकारों का  जो हर दिन अपने परिवारजनों और अपने साथियों को खो रहे हैं, और अपनी भी जान हथेरी पर रख कर खबरे दे रहे है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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