nayaindia Year 2023 2023: दुनिया बिखरी,और बर्बर!

2023: दुनिया बिखरी,और बर्बर!

आईए, एक बासी-से वाक्य से शुरूआत करें! – एक और साल दम तोड़ रहा है! मैं आपके बारे में नहीं जानती लेकिन मेरे लिए 2023 बहुत जल्दी बीत गया। मेरा अनुमान है कि 2020 से 2022 तक की थकान, पीड़ा और दुःख के बाद, 2023 एक ताज़ा हवा के झोंके सा था। 2023 वह सब करने का साल था, जो नहीं किया जा सका था, बाहर निकलकर चुनौतियों पर जीत हासिल करने का साल था। और हां ,बहुत सारी ‘जीतें’ हासिल भी की गईं।

महामारी के बाद दुनिया को दो जंगों का सामना करना पड़ा है। टेड्रोस एड्हानोम गेबरेयस (विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख, यदि आप भूल गए हों तो) के स्थान पर हमारे टेलिविजन सेटों पर, मोबाइल की स्क्रीनों पर, अखबारों और डिजीटल मीडिया पर हमने सभ्यताएं बिखरती देखीं, उनके वर्तमान और भविष्य को बर्बरता से नष्ट होते  देखा। व्लादिमिर पुतिन टस से मस नहीं हुए। उन्होंने अड़े रहने की प्रतिज्ञा की और यही व्लादिमिर जेलेंस्की ने किया। शरद ऋतु आते-आते बीबी नेतन्याहू की निर्दयता सामने आई, और वे भी भविष्य में वही करने के लिए दृढ़ हैं, और हमास भी।

इसका नतीजा है दो युद्ध, जिन्होंने दुनिया को एक-दूसरे के प्रति कटुता से लबरेज दो गुटों में विभाजित कर दिया है, देशों और उनके नागरिकों को दोनों में से एक पक्ष का समर्थन करने पर मजबूर कर दिया – एक का साथी और दूसरे का शत्रु बनने पर बाध्य कर दिया है। इसने दुनिया के दो माईबापों – अमरीका और चीन – के बीच पहले से चल रहे नए शीतयुद्ध की तीव्रता को भी बढ़ा दिया। लेकिन तुर्की से लेकर अर्जेंटीना तक लोकलुभावन वायदे करने वाले फल-फूल रहे हैं और डोनाल्ड ट्रंप और नरेन्द्र मोदी ताकतवर बने हुए हैं।

इस बीच ‘अपने दामाद’ ऋषि सुनक तमाम खामियों के बावजूद 10, डाउनिंग स्ट्रीट में टिके हुए हैं और उनकी देखरेख में यूके एलीजाबेथ युग से नए कैरोलियन युग में प्रवेश कर रहा है। हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में और अधिक राजनैतिक व आर्थिक अराजकता के हालात बने हैं। और इस सारे घटनाक्रम के दौरान दुनिया का तापमान बढ़ रहा है, महंगाई बढ़ती जा रही है और समाज बेहूदा होता जा रहा है। राजनीति और धर्म के बीच की दीवार ढ़हती जा रही है दोनों एक-दूसरे के रंग में रंगते जा रहे हैं।

हमारे देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सबसे लोकप्रिय राजनेता और प्रभावशाली व्यक्तित्व बने हुए हैं, और अपने फायदे के लिए चतुराई से राजनीति, धर्म और देशभक्ति का उपयोग कर रहे है। उनकी मौजूदगी ईश्वर की तरह सर्वव्यापी है, मामूली चीजों से लेकर भारत में हुए सबसे बड़े आयोजन, जी20 के उद्घाटन तक में। उन्होंने भारत को ‘चन्द्रमा पर पहुंचाया’ और नए भारत में भगवान राम की वापसी सुनिश्चित की! वे अत्यंत व्यस्त हैं, वे चुनावों में अपनी पार्टी और पार्टीजनों की सहायता करते हैं, इमेन्युअल मैक्रॉ और जियोर्जिया मेलोनी से मित्रता करते हैं और जस्टिन ट्रूडो और उनके कनाडा को उनकी औकात का अहसास कराते हैं। वे योजनाओं का उद्घाटन करते रहते हैं, गारंटियां देते हैं, अपने पुराने दोस्त बाइडन को गले लगाते हैं, नया संसद भवन, नई विधियां, नए कानून देते हैं…

और यह सब इतनी तेजी से हो रहा है कि नरेन्द्र मोदी की गति से सामंजस्य बिठाना मुश्किल है। पूरा देश उनके पीछे भागा-भागा है।

तभी मोदी उन्माद और उसमें भागते रहने में, नएपन में, हमारे देश का एक राज्य मणिपुर मई माह से जल रहा है। हमारे पहलवानों को उनके सम्मान से वंचित कर दिया गया है, संसद में, उनके घरों में और राजनीति में विपक्ष की मौजूदगी और भागीदारी में बार-बार बाधाएं हैं।वे थके, घबराए और लावारिश है। कुछ जेल में हे, जेल भेजा जा रहा है। और कुछ अन्य को ईडी के समन भेजे जा रहे हैं। और इस बीच जहां हमारी प्रेस और मीडिया मोदी के अमृतकाल को सुर्खियों में बनाये हुए है, वहीं एनवायटी भारत को कड़वे सच का आईना दिखा रहा है।

कोरोना काल के दो साल उन्माद और भय में बिताने के बाद हम आशा की किरण के लिए तरस रहे थे। लेकिन 2023 में मुसीबतें और बढ़ीं तथा साल जबरदस्त राजनैतिक खींचतान, अहं के टकराव, और छाती पीटने का साल साबित हुआ। एक ऐसा साल जो निराशाओं और गहन ध्रुवीकरण में फंसा रहा। उम्मीद जगाने वाली घटनाओं के बजाए दुनिया में अनहोनी होती रही, और राजनैतिक और व्यवस्था संबंधी टकराव हमारे रोजमर्रा के जीवन में गहराई तक घर कर गए। 2023 एक ऐसा साल बना है जैसा हम कभी नहीं चाहते थे! हम पहले से अधिक अलग-थलग हो गए, और हमने करुणा की बजाए घृणा क चुना। एकता की विभाजन को चुना। आप अपनी बात खुलकर नहीं कह सकते थे और करुणा और सहानुभूति भी वामपंथ और दक्षिणपंथ के रंग में रंग गई।

महामारी के दो सालों के दौरान हम अपने परिवारों, मित्रों और एक-दूसरे के ज्यादा नजदीक आए, लेकिन पूरे साल जारी युद्ध, बांटने वाली राजनीति, और अहंकार ने एक बार सब कुछ चूर-चूर कर दिया है। आज हम सब पहले के किसी भी दौर की तुलना में ज्यादा अकेले हैं, और हमारे चारों ओर टूटे हुए कांच के टुकड़े पड़े हैं। परिवार और मित्र, दोस्त होते हुए भी दुश्मन बन गए हैं, नए संबंध सिर्फ सोशल मीडिया पर बन रहे हैं और सोशल मीडिया अवगुणों और ज्ञान का नया स्त्रोत है। हर नजरिए को लेकर एक राय है, हर सुझाव को लेकर त्यौरिंया चढ़ जाती हैं। हर व्यक्ति यह सोचता है कि वह सब कुछ जानता है जबकि हकीकत यह है कि किसी को भी कुछ भी पता नहीं है।

हर आदमी मुखौटा लगाए हुए है, सब कुछ एक प्रहसन बन गया है। हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जो न तो आदर्श है और न ही भौतिक है बल्कि जो विक्षिप्त जान पड़ती है। इंडिया, भारत, दुनिया, वैश्विक व्यवस्था, मेरी दुनिया, आपकी दुनिया –जैसी विभाजक रेखाएं और गहरी हुई हैं। हम बढ़ती चुनौतियों का मिलकर मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं।जाहिर है 2023 अधिक अंधकार लाया है, और 2024 में यह अंधकार ज्यादा घनाहोगा। लेकिन कहते हैं कि रोशनी ढूंढ़ी जा सकती है, और वह अक्सर वहां मिलती हैं जहां उसके होने की बिल्कुल उम्मीद नहीं होती। 2024 को वास्तव में ऐसा साल बनना होगा जिसमें ऐसे ही अनापेक्षित स्थानों पर रोशनी मिले। तो चलिए, खुशी मनाएं, केक काटें, हँसे-हंसाएं और इस निराशाजनक दौर में एक मोमबत्ती जलाएं क्योंकि अंधेरा कितना भी गहरा क्यों न हो वह रोशनी को नहीं रोक सकता। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

Tags :

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें